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________________ श्री अजितनाथ-चरित्र [५८३ पित पदार्थों का विलेपन किए बगैरही आपका शरीर नित्य - सुगंधित रहता है। उसमें मंदारकी' मालाकी तरह, देवताओं की स्त्रियों के नेत्र भ्रमरपनको पाते हैं। (अर्थात जैसे मंदार. पुष्पोंफी मालापर भौरे मंडराते हैं उसी तरह देवांगनाओंफी आँखें आपके शरीरपर फिरा करती हैं-आपकोही देखा करती हैं।) हे नाथ ! दिव्य अमृतरसके स्वाद के पोपणसे मानो नष्ट हो चुके हों ऐसे रोगरूपी सपों के समूह आपके शरीर में प्रवेश नहीं कर सकते हैं। (अर्थात आपके शरीरपर किसी रोगका असर नहीं होता।) दर्पण-तल में लीन हुए प्रतिबिंबके समान भापके शरीर में, झरते हुए पसीनेकी लीनताकी बात कैसे संभव हो सकती है ? (अर्थात आपके शरीरमें कभी पसीना नहीं आता।) हे वीतराग ! आपका केवल अंतःकरणही रागरहित नहीं है, मगर आपके शरीरका खून भी दूधको धाराके जैसा सफेद है । आपमें दूसरी भी (कई बातें) दुनियासे अनोखी हैं। यह यात हम कह सकते हैं। कारण,-आपका मांस भी अच्छा है, अवीभत्स है और सफेद है । जल और स्थलमें उत्पन्न होने. वाले फूलोंकी मालाओंको छोड़कर भौंरे आपके निःश्वासकी सुगंधका अनुसरण करते हैं। आपकी संसार स्थिति भी लोकोत्तर चमत्कार करनेवाली है। कारण,-आपका आहार (भोजन फरना) और नीहार (टट्टी और पेशाब करना) आँखोंसे दिखाई नहीं देता है।" (४७१-४७८) १-स्वर्गका एक पेड़ तथा उसके फूल । [एनना-इस स्तवन में, अरिएंतोके चौतीस अतिशयोमेसे भारंभ. -
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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