SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 594
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५७० ] त्रिपष्टि शलाका पुरुप-चरित्रः पर्व २. सग २. बैठती है वैसेही, इंद्राणियाँ अनुक्रमसे अपने अपने आसनोपर बैठीं। (३०७-३१२) चौरासी हजार सामानिक देव, उत्तर दिशाकी सीढ़ीसे, विमानपर चढ़े और अपने अपने भद्रासनोपर बैठे। वे रूपसे इंद्रके प्रतिबिंबसे जान पड़ते थे। दूसरे देवी-देवता भी दक्षिण तरफकी सीढ़ीसे चढ़कर अपने अपने योग्य स्थानोंपर बैठे। सिंहासनपर बैठे हुए इंद्रके श्रागे, मानो एक एक इंद्राणीने मंगल किए हों ऐसे, आठ मांगलिक चले। उनके बाद छत्र, भारी और पूर्ण कुंभादिक चले, कारण ये स्वर्गराजके चिह्न हैं और छायाकी तरह उसके सहचारी है। उनके आगे हजार योजन ऊँचा महाध्वज चला। सैकड़ों छोटी छोटी पताकाओंसे वह, पत्तोंसे वृक्ष शोभता है वैसे; शोभता था। इनके आगे इंद्रके पांच सेनापति और अधिकारमें (अपने काममें ) कभी प्रमाद - नहीं करनेवाले श्राभियोगिक देवता चले। (३१३-३१६) इस तरह असंख्य महान ऋद्वियोवाले देवता जिसकी सेवामें हैं ऐसा, चारणगण जिसकी ऋद्धियोंकी स्तुति कर रहा है ऐसा, जिसके सामने नाट्यसेना,गंधर्वसेना, नाट्य, गीत और नृत्य कर रहे हैं ऐसा, पाँच सेनाओंने जिसके आगे महाध्वज चलाया है ऐसा और उसके यागे बजनेवाले वाजॉसे मानो वह ब्रह्मांडको फोड़ता हो ऐसा मालूम होता हुआ इंद्र, सौधर्म देवलोककी उत्तर तरफ, तिरछे रस्तेसे, पालक विमानके द्वारा, पृथ्वीपर उतरनेकी इच्छासे, रवाना हुया। कोटि देवोंसे परिपूर्ण चलता हुआ पालक विमान, मानो चलता हुआ सीधर्म कल्प हो ऐसा, सशोभित होने लगा। उसका वेग मनको गति भी अधिक 'an
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy