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________________ ५६० ] त्रिषष्टि शलाका पुरुप-चरित्र: पर्व २. सर्ग २. महत्तरा, सामानिक, अंगरक्षिका, सेना और सेनापतियोंके सहित वहाँ आई। उन्होंने स्वामीके जन्मसे पवित्र बने हुए सुनिकागृहमें जाकर जिनेंद्र और जिनमाताको तीन बार प्रदक्षिणा दी और पहलेकी देवियोंकी तरह ही अपना परिचय दे, विजयादेवीको प्रणाम, नथा स्तुति कर मेवको विकृर्वित किया। (यानी श्राकाशमं बादल बनाए।) उसने भगवानके जन्मस्थानसे (चारों तरफ) एक एक योजन तक-न कम न ज्यादानांधोदककी वर्षा की । तपसे जैसे पापकी शांति होती है और पूर्णिमाकी चाँदनीसे से अंधकार मिटता है वैसेही, नत्कालही उस वर्षासे रजकी शांनि हो गई। यानी धूल उड़नी बंद हो गई ।) उसके बाद उन्होंने रंगभूमिमें रंगाचायकी नरह,तत्कालही त्रिकसित, और विचित्र पुष्प वहाँ फैला दिए इसी तरह कपूर तथा अगरकी धूपसे, मानो लक्ष्मीका निवासगृह हो ऐसे, उस भूमिको मुर्गधिन बना दिया। फिर वे तीर्थंकर और उनकी मातासे थोड़ी दूरीपर भगवान के निर्मल गुणोंका गायन करती हुई खड़ी रहीं। (१८८-१९७) ___इसके बाद नंदा, नंदोतरा, आनंदा, आनंदवर्टना, बिलया, वैजयंती, जयंती और अपराजिता नामकी पूर्वन्चकाद्रिमें निवास करनेवाली पाठ दिवमारियाँ अपनी सर्व ऋद्धि, और अपने पूर्ण बल सहित वहाँ पाई। पूर्वकी तरह वे परिवार सहित सुतिकागृहमें गई और स्वामी नथा उनकी माताको प्रणाम कर, तीन प्रदक्षिणा कर स्वामीको अपना परिचय दे, पूर्ववत नमन व म्तुनि कर, रत्नके दर्षगा हाथमें ले गायन करती हुई पूर्व दिशामें खड़ी रहीं। (१६८-२०१)
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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