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________________ ५५८] त्रिषष्टि शलाका पुरुप-चरित्रः पर्व २. सर्ग २. - भोगवती, सुभोगा, भोगमालिनी, तोयधारा,विचित्रा, पुष्पमाला, और अनिदिना ये पाठ दिक्कुमारिकाएँ विमानोंमें सवार हुई। हरेकके साथ चार चार हजार सामानिक देवियों, चार महत्तग देवियों, सात महा अनीकें (फोजें), सात सेनापति, सोलह हजार प्रात्मरक्षक देवियाँ,अनक व्यंतर देवता तथा बड़ी ऋद्धिवाली देवियाँ थीं। वे सब मनोहर गीत-नाच कर रही थीं। उनका विमान ईशान दिशाकी तरफ चला। अव उन्हान क्रिय समुद्वान करके असंख्य योजनका एक दंड बनाया । वडुर्यरत्न, बजरत्न, लोहिन, अंक, अंजन, अंजन घुलक,पुलक,व्योतिरस, सोगंधिक,अरिष्ट, नफटिक, जातप और हमगर्म वगैरा अनेक तरहक उत्तम रत्नकि नया प्रसारगल्ल वगैग़ मणियोंकि स्थल पुद्गलोकोदर करके उनमंस सुक्ष्म पुदगल ग्रहण किए. पार उनसे अपना उत्तर वैक्रिय रूप बनाया। कहा है "देवतानां जन्मसिद्धाः खलु बैंक्रियलब्धयः ।" [देवताओंको जन्मसेही बैंक्रियलब्धि सिद्ध होती है।] फिर उत्कृष्ट, त्वरित, चल, प्रचंड, सिंह, उद्धत,यतना, छंक और दिव्य ऐसी देवगतियोंसे, सर्व ऋद्धि तथा सर्व बल सहित वे अयोध्या,जितशत्रु राजाके सदन में था पहुंची । ज्योतिष्क देव अपने बड़े विमानोंस मेक पर्वतको प्रदक्षिणा देत है बसही उन्होंने तीर्थकर मूनिकागृहको तीन प्रदक्षिणा दी और फिर विमानोंको पृथ्वीसे चार अंगुल ऊँचे, जमीनको न छुएं ऐसे ईशान फोनमें खड़ा किया । फिर. (विमानोंसे उतरकर) ३ सूतिकागृह १-वहियब्धिवाले इच्छानुसार अपने शरीरको बदल सकते हैं।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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