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________________ - श्री अजितनाथ-चरित्र [५५७ सहित आठ-दस कदम तीर्थंकरकी दिशाकी तरफ चल, मानो मनको आगे किया हो ऐसे, प्रभुको नमस्कार कर, सबने शकस्तवसे भक्तिपूर्वक वंदना की। फिर सबने निज निज सिंहासनोंपर बैठकर अपने अपने आभियोगिक देवताओंको इस तरह आज्ञा की-(१३१-१५२) "हे देवताओ ! दक्षिण भरतार्धमें दूसरे तीर्थंकरका जन्म हुआ है। आज हमें उनका सूतिका-कर्म करनेके लिए वहाँ जाना है। इसलिए बहुत बड़े लंबे चौड़े विविध रत्नोंके विमान हमारे लिए तैयार करो।" उनकी यह आज्ञा सुनकर महान शक्तिशाली उन देवताओंने तत्काल विमानोंकी रचना कर उनको बतलाया। वे विमान हजारों स्वर्णकुंभोंसे उन्नत थे; पताकाओंसे वैमानिक देवताओंके, मानों वे पल्लव हों ऐसे मालूम होते थे; तांडवश्रमसे थकी हुई नर्तकियोंके मानो समूह हों ऐसी पुतलियोंवाले मणिस्तंभोंसे वे सुंदर लगते थे; घंटाओंके घोपके आडंबरसे वे हाथियोंका अनुसरण करते थे; आवाज करती हुई घुघरियोंके समूहसे वे वाचाल मालूम होते थे; मानो लक्ष्मीके आसन हों ऐसी वनवेदिकाओंसे वे सुशोभित थे और उनसे फैलती हुई हजारों किरणोंसे वे ऐसे मालूम होते थे मानो सूर्यबिंब हों; उनकी, चारों तरफकी, दीवारों और खंभोंपर रत्नमय ईहामृग (भेड़िए), बैल, घोड़े, पुरुप, रुरुमृग (काले मृग), मगर, हंस, शरंभ (अष्टापद), चामर, हाथी, किन्नर, बनलता और पद्मलताके समूह बने हुए थे। (१५३-१६१) प्रथम अधोलोकमें बसनेवाली, देवदुण्यवस्त्र धारण करनेवाली और जिनके केशपाश पुष्पोंसे अलंकृत हैं ऐसी-भोगकरा, -
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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