SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 576
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५५२ ] त्रिषष्टि शलाका पुनय-चरित्र: पर्व २. सर्ग २. हाल जिम नरह बगीचोम पत्रन फल निगते हैं, फिर वे प्रति हारकं द्वारा बनाए गए मद्रासनापर इस तरह बैट जिस तरह हम कमलिनीके पन्नोंपर बैठते हैं। राजान अपनी रानीको और पुत्रवधूको परदे अंदर इस तरह बैठाया जिसनरह मेघोंके अंदर चंद्रलेखा रहनी है और नवमानों मानात स्वप्नफल हों ऐसे पुष्प और फल अंजलीम लेकर अपनी गनी व पुत्रवधुके सुपने उन नैमित्तिकोंको बताए। उन्होंने अापसमें, वहीं एकांतमें विचारविमर्श-सलाह-मशवरा करकं स्वप्नशान्त्र अनुसार सपनोंका अभिप्राय इन नरह कहना प्रारंभ क्रिया,-(८-१७) "६ देव स्वप्नशान्त्रमें बहत्तर सपन बनाए गए हैं। उनमें ज्योनिष्क देवांमें ग्रहकी तरह तीस सपने उत्कृष्ट कह गए है। उन तीम सपनों में भी इन चौदह सपनांको उस शात्रके चतुर विद्वान महास्वप्न कहते हैं। जब नीर्थकर अथवा चक्रवर्ती गर्ममें याने है नत्र उनकी माता रानक चौथ पहरम अनुक्रमसे इन सपनोंको देखती हैं। इनमसे सानु सपने वासुदेवकी मदादेखती है, चार सपने बलमद्रकी माना ग्वती है और एक सपना मंह लश्वरकी माना देखनी है । एक साथ (एकही माना ) दो तीर्थकर. या दो चक्रवर्ती नहीं होते। एक माताक पुत्र तीर्थकर और दूसरी मातार पुत्र चक्रवर्ती होते है। ऋषभदेवके समयमें भरत चक्रवर्ती हुए हैं और अजितनाथके समयमें मुमित्रके पुत्र मगर गजा चक्रवर्ती होगी जितशत्र गजाके पुत्र दुसरे तीर्थकर हाँग । उनका नाम अजितनाथ होगा। यह बात हमने अर्हत श्रागनसे (निनमापिन शान्त्रस) जानी है। इससे विनयादेवी पुत्र तीर्थकर हॉग और वैजयंती के पुत्र पटखंड भरतके
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy