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________________ श्री अजितनाथ-चरित्र [५५१ की कांतिकी तरह इन विद्वानों में कुवलयको' आनंद देनेके गुण होते हैं।" कुमारके हाँ कहनेपर राजाने आदर सहित स्वपनशास्त्र जाननेवाले पंडितोंको बुला लाने के लिए प्रतिहारको भेजा। (८३-८६) फिर प्रतिहारने जिनके आनेके समाचार दिए हैं ऐसे, व (स्वप्न शास्त्रको जाननेवाले) साक्षात ज्ञानशास्त्रके रहस्य हों ऐसे नैमित्तिक उस राजाके सामने आए। स्नानसे उनकी कांति निर्मल थी और उन्होंने धोए हुए स्वच्छ वस्त्र पहने थे; इससे वे पर्वणी (पूर्णिमा) के चाँदकी कांतिसे आच्छादित तारे हों ऐसे लगते थे। मस्तकपर दूर्वाके अंकुर डाले थे इससे मानो मुकुट धारण करते हों ऐसे और केशोंमें फूल थे इससे वे मानो हंस और कमलों सहित नदियोंका समूह हों ऐसे मालूम होते थे। ललाटपर उन्होंने गोरोचनके चूर्णसे तिलक किया था इससे वे अम्लान (पूर्ण तेजवाली ) ज्ञानरूपी दीपशिखाओंसे शोभते थे और अमूल्य और थोड़े आभूपण उनके शरीरपर थे उनसे वे सुगंधित और थोड़े थोड़े फलोंवाले चैत्रमुखदुमों के समान शोभते थे। उन्होंने राजाके पास आकर, (राजा व कुमारको) भिन्न भिन्न और एक साथ भी आर्यवेदोक्त मंत्रोंसे आशीर्वाद दिया; और राजापर कल्याणकारी दूर्वा, अक्षतादि इस तरह १-चाँदके पक्ष में 'कुवलय' का अर्थ है चंद्रमासे विकसित होनेवाला कमल और दूसरे पक्ष में कुवलयका अर्थ है पृथ्वोका वलय ( मंडल ) २-चैत्र मास यानी वसंत ऋतु प्रारंभ होनेके पहले खिले हुए थोड़े फूलोंवाले वृत्त । ३-संस्कृत त्रिपटि श० पु० च० में टिप्पणमें इसका अथ 'जैनवेदोक्त' दिया है।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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