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________________ ___ ५४६] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्ष २. सर्ग २. ऐसी और रत्नगिरिका मानो शिखर हो ऐसी आकाशगामिनी पताकासे अंकित रत्नमय ध्वज देखा। ___-पूर्णकुंभ- नवें सपनेमें उसने, खिले हुए कमलोंसे जिसका मुख ढका हुआ है ऐसा, मंगल-गृहके समान सुंदर पूर्णकुंभ देखा। १०-पद्मसरोवर-दसवें सपने में उसने लक्ष्मीदेवीके मानो आसन हों ऐसे, कमलोंसे चारों तरफ मुशोभित, स्वच्छ जलकी तरंगोंसे मनोहर पद्मसरोवर देखा। ११-समुद्र-ग्यारहवें सपने में उसने उछलती हुई तरंगोंसे और एकके बाद एक उठती हुई लहरोंसे मानो आकाशमें स्थित चंद्रमाका आलिंगन करना चाहता हो ऐसा समुद्र देखा। १२-विमान- बारहवें सपने में उसने मानो अनुत्तर देवलोकके विमानोंमेंसे उतरकर आया हो ऐसा, एक रत्नमय विचित्र विमान देखा। १३-रत्नपुंज-तेरहवें सपनेमें उसने रत्नगर्भा (पृथ्वी) ने मानो रत्नोंके सर्वस्त्रको जन्म दिया हो ऐसा, बहुत कांतिके समूहवाला उन्नत रत्नपुंज देखा। १४-निर्धम अग्नि-चौदहवें सपनेमें उसने तीनलोकमें रहे हुए सभी तेजस्वी पदार्थाका मानो तेजपुंज जमा किया हो ऐसी, निधूम अग्नि (जिसमें धुआँ न उठता हो ऐसी भाग) देवी। इस तरहसे परिपाटीके अनुसार इन चौदह सपनाका क्रमशः अपने मुखकमलम भ्रमरोंकी तरह प्रवेश करते हुए
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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