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________________ . श्री अजितनाथ-चरित्र . [५४१ शुद्धदर्शनी (सम्यक्त्वी) मुनि उनको मिथ्या नहीं मानते थे। . इस तरह मन, वचन और कायाको वशमें रखनेवाले थे मुनि अपने आप पैदा हुए या दूसरोंके द्वारा किए गए शारीरिक और मानसिक सभी परिसहोंको सहन करते थे। (२७६-२६८) श्रीमान श्रहंत स्वामीके ध्यानमें निरंतर लीन रहकर उन मुनिने अपने चित्तको चैत्यवत (मूर्तिकी तरह) स्थिर बना लिया। सिद्ध, गुरु, बहुश्रुत, स्थविर,तपस्वी, श्रुतज्ञान और संघपर उनके मनमें भक्ति थी, इससे उन स्थानकोंका तथा दूसरे भी तीर्थकर नामकर्म उपार्जन करानेवाले स्थानकोंका-जिनकी आराधना करना महान आत्माओंके बिना दूसरोंके लिए दुर्लभ है-उन्होंने सेवन किया और एकावली, कनकावली, रत्नावली और ज्येष्ठ किंवा कनिष्ठित सिंहनिष्क्रीडित वगैरा उत्तम तप उन्होंने किए। कोंकी निर्जरा करने के लिए उन्होंने मासोपवाससे आरंभ कर अष्टमासोपवास तकके तप किए। समताधारी उन महात्माओंने इसतरह महान तप कर अंतमें दो तरहकी संलेखना तथा अनशन करके, तत्परतासहित पंचपरमेष्ठीका स्मण करते हुए अपने शरीरका इस तरह त्याग कर दिया जिस तरह मुसाफिर विश्रामस्थानका त्याग कर देते हैं। (२६६-३:५) दूसरा भव वहाँसे उनका जीव विजय नामक अनुत्तर विमानमें तेतीस सागरोपमकी आयुवाला देवता हुआ। उस विमानके देवताओंका शरीर एक हाथ प्रमाणका और चंद्रमाकी किरणों के समान
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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