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________________ .. .... श्री अजितनाथ-चरित्र [५३३ - लाए गए स्वर्ण और माणिक्यके मुफुटको मस्तकपर धारण किया। - गुणरूपी आभूषणोंको धारण करनेवाले उस राजाने हार, भुजबंध और कुंडल वगैरा दूसरे आभूषण पहने । मानो दूसरा कल्पवृक्ष हो इस तरह उस राजाने रत्न, सोना, चाँदी, वस्त्र और दूसरी जो चीजें याचकोंने माँगी, वे दी। फिर कुबेर जैसे पुष्पक विमानमें बैठता है वैसे नरकुंजर (मनुष्यों में हाथीके समान) विमलवाहन राजा, सौ पुरुपोंसे उठाई जा सके ऐसी शिविकामें बैठा । साक्षात तीन रत्न (दर्शन, ज्ञान और चारित्र) आकर उसकी सेवा करते हों ऐसे, दो चामर और एक छत्र उसकी सेवा करने लगे। मानो मिले हुए दो मित्र हों ऐसे, चारण-भाटोका कोलाहल और बाजोंका तार शब्द पुरुषोंको प्रसन्न करने लगा । ग्रहोंसे जैसे ग्रहपति (सूर्य-चंद्र) शोभता है वैसेही, आगे, पीछे और आसपासमें चलते हुए श्रीमानों और सामंतोंसे वह सुशोभित होने लगा। झुके हुए वृंत (बौंडी) वाले कमलकी तरह, झुके हुए सरवाले और आज्ञा चाहनेवाले द्वारपालकी तरह राजकुमार आगे चलने लगा। भरे हुए घड़ेको प्रहण करनेवाली नगरकी स्त्रियाँ, कदम कदमपर मंगल कर, क्रमसे उसे देखने लगी। विचित्र प्रकारके मंचोंसे व्याप्त, पताकाओंकी पंक्तियोंसे भारवाले और यक्षकर्दमसे पंकिल (कीचवाले) बने हुए राजमागोंको पवित्र करता हुआ वह चलने लगा। ....... . 'हरेक मंचपरसे, गंधर्व वर्गके समान गीत गाती हुई। पनिताएँ आरती उतार उसार कर जो मंगल करती थीं उनको
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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