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________________ श्री अजितनाथ-चरित्र . [५३१ पुराना स्नेह भी इस लक्ष्मीकी स्थिरताका कारण नहीं होता, इसलिए इसे जब अवसर मिलता है तभी, सारिका(मैना की तरह यह तत्कालही अन्यत्र जली जाती है । इसे कुलटा नारीकी तरह बदनामीका डर भी नहीं होता। यह कुलटाकी तरह जागते हुए भी प्रमादमें पड़े हुए पतिको छोड़ जाती है । लक्ष्मीको कभी इस वातका विचार नहीं आता कि मेरी चिरकालसे यहाँ रक्षा हुई है। यह तो मौका पातेही वंदरीकी तरह कूदकर चली जाती है। निर्लजता, चपलता और स्नेहहीनताके सिवा दूसरे भी अनेक दोप इसमें है । और जलकी तरह नीचकी तरफ जाना तो इसका स्वभावही है। ऐसे, लक्ष्मी सव दुर्गुणोंवाली है तो भी, सभी लोग इसको पानेकी कोशिश करते हैं। इंद्र भी लक्ष्मीमें आसक्त है. तब दूसरोंकी तो वातही क्या है ? उसको स्थिर रखने के लिए तू चौकीदारकी तरह नीति और पराक्रमसे सम्पन्न होफर सदा सावधान रहना । लक्ष्मीकी इच्छा रखते हुए भी अलुब्ध (निर्मोही) की तरह सदा इसका पालन करना। कारण,-- लक्ष्म्यः सुभगस्येव योषितः।" [स्त्रियाँ जैसे सुंदर पुरुपकी अनुगामिनी होती है वैसेही लक्ष्मी सदा निर्लोभीके पीछे चलती है। ] गरमीके सूरजकी तरह अति प्रचंड होकर कभी दुःसह करके भारसे पृथ्वीको पीड़ित मत करना । जैसे उत्तम वस्त्र,जरासा जलनेपर भी, छोड़ दिया आता है वैसेही, थोड़ासा अन्याय करनेवाले पुरुपको भी अपने पास मत रखना। शिकार, जूआ और शरावको तू सर्वथा बंद करना । कारण,
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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