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________________ . . . : श्री अजितनाथ-चरित्र [ ५१५ समुद्रको धिक्कार है ! यह बात कैसे खेदकी है कि संसारमें स्वप्नजालकी तरह क्षणमें दिखाई देने और क्षणमें नाश होनेवाले पदार्थों से सभी जंतु मोहित होते हैं। यौवन हवाके द्वारा हिलाए हुए, पताकाके पल्लेकी तरह चंचल है और आयु कुशके पत्तेपर. रहे हुए जलविंदुकी तरह नाशमान है। इस आयुका बहुतसा भाग, गर्भावासमें, नरकावासकी तरह, दुःखमें बीतता है; और उस स्थितिके महीने पल्योपमके समान लंबे मालूम होते हैं। जन्म होने के बाद आयुका बहुतसाभाग, बचपनमें अंधेकी तरह, पराधीनतामेंही चला जाता है; जवानीमें प्रायुका बहुतसा भाग, इंद्रियोंको आनंद देनेवाले स्वादिष्ट पदार्थाका उपभोग करने में और ( विपयं सेवनमें ) उन्मत्त आदमीकी तरह व्यर्थ जाता है; और वृद्धावस्थामें त्रिवर्ग (धर्म, अर्थ व काम) की साधना करने में अशक्त बने हुए शरीरवाले प्राणीकी बाकी आयु सोते हुए मनुष्यकी तरह बेकार जाती है। विषय के स्वादसे लपट बना हुप्रा मनुष्य रोगीकी तरह रोगके लिए ही कल्पित किया जाता है, यह जानते हुए भी संसारी जीव संसारमें भ्रमण करनेके लिएही कोशिश करते हैं। प्रादगी जवानी में जैसे विषयसेवनके लिए यत्न करता है वैसेही, वह अगर मुनिके लिए प्रयत्न करे तो ( उसके लिए) किस चीजकी कमी रह सकती है? अहो ! मकड़ी जैसे अपनीही लारके तुत्रोंसे बने हुए जालमें फँस जाती है वैसेही, प्राणी भी अपनेही फर्मा से बनाया जालमें फंस जाते हैं । समुद्रमें युगशमिला प्रवेश' न्यायको तराः - - - rintere - - - १-लभूमग समुद्र मे अंदर शलग रग दिशा मान दूरोपर एक पुरा और उसमें डालने वाले जाएँ और यम.
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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