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________________ श्री अजितनाथ-चरित्र [ ५१३ में रही हुई यह नगरी, अतुल संपत्तिवाली उनकी सहोदरा ( सगी बहन) हो ऐसी मालूम होती थी। (१४-२४) उस नगरमें चंद्रमाके समान निर्मल और गुणरूपी किरणोंसे विमल आत्मावाला विमलवाहन नामका राजा राज्य करता था। वह राजा, प्रजाको अपनी संतानके समान पालता था, पोसता था, उनकी उन्नति करता था और उनको गुणवान बनाता था। वह राजा अपनेसे हुए अन्यायको भी सहन नहीं करता था। कारण, "चिकित्स्यते हि निपुणैरंगोद्भवमपि त्रणम् ।" [चतुर लोग अपने शरीरमें हुए फोड़ेकी भी चिकित्सा करते हैं। वह राजा महापराक्रमी था। अपने आस-पासके राजाओं के मस्तकोंको लीलामात्रहीमें इस तरह मुका देता था जिस तरह हवा वृक्षोंकी डालियोंको मुकाती है । तपोधन महास्मा जैसे अनेक तरहके प्राणियोंकी रक्षा करते हैं उसी तरह, वह परस्पर अबाधित रूपसे त्रिवर्गका (धर्म, अर्थ और कामका ) पालन करता था। वृक्ष जैसे पागको सुशोभित करते है वैसेही; उदारता, धीरज, गभीरता और क्षमा वगैरा गुण उसे सुशोभित करते थे। सौभाग्य धुरंधर और फैलते हुए उसके गुण, बहुत समयके बाद आए हुए मित्रकी तरह, सबसे गले मिलते थे। पवनकी गतिकी तरह पराक्रमी उस राजाका शासन पर्वतों, जंगलों और दुर्गादि प्रदेशों में भी रुकना न था। सभी दिशाओं. को आकांन कर, जिसका तेज पल रहा है से, उस राजाक चरण, सूर्यकी तरह, सभी राजाओंके मस्तकापर टकराने थे।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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