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________________ .. भ० ऋषभनाथका वृत्तांत [४६७ ...... इस तरह चैत्यनिर्माण करा, उसमें प्रतिष्ठा करा, चंद्र जैसे बादलोंमें प्रवेश करता है वैसेही, चक्रवर्तीने सफेद वस्त्र . धारण कर, उसमें प्रवेश किया। परिवार सहित प्रदक्षिणा दे .. महाराजाने उन प्रतिमाओंको, सुगंधित जलसे स्नान कराया और देवदुष्य वनसे पोंछा; इससे वे प्रतिमाएँ रत्नके आदर्शकी तरह अधिक उज्ज्वल हुई। फिर उसने चंद्रिकाके समूहसे निर्मलगा और सुगंधितगोरुचंदनके रससे प्रतिमाओंपर विलेपन किया और विचित्र रत्नोंके आभूषणों, दिव्य मालाओं और देवदुष्य पत्रोंसे उनकी अर्चना की। घंटा बजाते हुए धूप दिया जिसके धुएँकी श्रेणियोंसे उस चैत्यका अंतर्भाग, मानो नीलवल्लीसे अंकित हो ऐसामालूम होने लगा। उसके बाद, मानो संसाररूपी शीतके भयसे डरे हुए मनुष्यके लिए जलता अग्निकुंड हो ऐसी कपूरकी आरती उतारी। (६३८-६४४) _ इस तरह पूजा कर, ऋषभस्वामीको नमस्कार कर, शोक और भयसे आक्रांत हो (अर्थात अति शोक और भयभीत हो) चक्रवर्तीने इस तरह स्तुति की, "हे जगत्सुखाकर ! हे तीन लोकके नाथ ! पाँच कल्याणकोंसे नारकियोंको भी सुख देनेवाले! श्रापको मैं नमस्कार करता हूँ। सूर्यकी तरह विश्वका हित करनेवाले हे स्वामी! आपने हमेशा विहार करके इस चरा. चर जगतके ऊपर अनुग्रह किया है। आर्य और अनार्य इन .दोनोंपर प्रीति होनेसे आप सदा विहार करते थे, इससे (जान पड़ता है कि ) पवनकी और आपकी गति परोपकारके लिए ही है।हे प्रभो ! इस लोकमें मनुष्योंका उपकार करने के लिए आपने ३२
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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