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________________ भ० ऋषभनाथका वृत्तांत - [४५६ किया। सूर्ययशाके बाद महायशा वगैरा राजा हुए उन्होंने चाँदीके यज्ञोपवीत बनवाए। उनके बाद दूसरोंने पट्टसूत्रमय (रेशमके धागोंके) यज्ञोपवीत वनवाए और अंतमें रुईके सूतके (धागोंके) यज्ञोपवीत बनवाए जाने लगे। ( २२६-२५०) भरत सूर्ययशा,महायशा.अतिबल,बलभद्र,बलवीर्य, कीर्तिवीर्य, जलवीर्य और दंडवीर्य-ऐसे क्रमशः आठ पुरुषों तक ऐसा ही आचार रहा। इन्होंने इस भरतार्द्धके राज्यका उपभोग किया और इंद्रके बनाए हुए राज्यमुकुटको भी धारण किया। फिर दूसरे राजा हुए; मगर मुकुट महाप्राण (बहुत बजनदार) होनेसे वे उसे धारण नहीं कर सके । कारण,__"हस्तिभिर्हस्तिभारो हि वोढुं शक्येत नापरैः।" [हाथीका वजन हाथीही उठा सकते हैं, दूसरे नहीं उठा सकते । नवें और दसवें तीर्थंकरोंके बीचमें साधुओंका विच्छेद हुआ और उसी तरह उनके बादमें सात तीर्थंकरोंके अंतरमें शासनका विच्छेद हुआ। उस समयमें अहंतकी स्तुति और यतियों तथा श्रावकोंके धर्ममय वेद-जिनकी भरत चक्रवर्तीने रचना की थी-बदले गए। उसके बाद सुलभा और याज्ञवल्क्य आदिके द्वारा अनार्य वेद रचे गए।" (२५१-२५६) भावी तीर्थकर, चक्री आदिका वर्णन चक्रधारी भरत राजा श्रावकोंको दान देते और कामक्रीड़ा संबंधी विनोद करते हुए दिन बिताने लगे। एक बार चंद्र जैसे आकाशको पवित्र करता है वैसेही अपने चरणोंसे पृथ्वीको पवित्र करते हुए भगवान आदीश्वर अष्टापद पर्वतपर पधारे ।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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