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________________ ४४६ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व १. सर्ग ६. के बीचमें मानों चारों दिशाओंकी देवियों के रूपके दर्पण हों ऐसे चार छत्र थे और आकाशगंगाकी चपल तरंगोंकी भ्रांति उत्पन्न करनेवाली, पवनके द्वारा फर्राई हुई ध्वजा-पताकाएँ सुशोभित हो रही थीं। उन तोरणों के नीचे बनाए हुए मोतियोंके स्वस्तिक 'सब जगतका यहाँ कल्याण है। ऐसी चित्रलिपिका भ्रम पैदा करते थे। वैमानिक देवताओंने बाँधे हुए भूमितलपर रत्नाकरकी शोभाके सर्वस्त्र समान, रत्नमय गढ़ बनाया और उस गढ़पर मानुषोत्तर पर्वतकी सीमापर स्थित चाँद सूरजकी किरणोंकी माला जैसी माणिक्यके कंगूरोंकी मालाएं बनाईं। फिर ज्योतिष देवोंने, वलयाकार (परिधिवाला) बनाया हुआ हेमाद्रि पर्वतका शिखर हो ऐसा, निर्मल स्वर्णका मध्यम गढ़ बनाया; और उसपर रत्नमय कंगूरे बनाए। वे कंगूरे उनमें प्रतिबिंब पड़नेसे, चित्रवाले हों ऐसे मालूम होते थे। उसके बाद भुवनपतियोंने, कुंडलाकार बने हुए शेषनागके शरीरका भ्रम पैदा करनेवाला चाँदीकी अंतिम गढ़ बनाया और उसपर, क्षीरसागरके जलके किनारेपर रही हुई गरुड़ोंकी श्रेणी हो ऐसी, सोनेके कंगूरोंकी श्रेणी बनाई। फिर जैसे अयोध्या नगरीके गढ़में बनाए थे वैसेही, यक्षोंने हरेक गढ़में चार चार दरवाजे बनाए और उन दरवाजोंपर माणिक्योंके तोरण बाँधे; अपनी फैलती हुई किरणोंसे, वे तोरण सौगुने हों ऐसे मालूम होतेथे। व्यंतरोंने हरेक दरवाजेपर आँख की रेखामें रही हुई काजलकी रेखाकी तरह मालूम होती धूएँरूपी ऊर्मियोंको धारण करनेवाली, धूपदानियाँ रखी थीं। विचले गढ़की ईशान दिशामें, घरमें देवालयके जैसा, प्रभुके विश्राम करने के लिए एक देवछंद बनाया। व्यंतरोने, जहाजके
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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