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________________ भ० ऋषभनाथका वृत्तांत [४४५ ताल और हिंतालके वृक्षोंसे मानो श्याम वनवाला हो ऐसा; किसी जगह सुंदर पुष्पवाले ढाकके वृक्षोंसे मानो पीले वस्त्रवाला हो ऐसा और किसी जगह मालती और मल्लिकाके समूहसे मानो श्वेत वस्त्रवाला हो ऐसा मालूम होता था। उसकी ऊँचाई पाठ योजन होनेसे वह आकाश तक ऊँचा मालूम होता था। ऐसे उस अष्टापद पर्वतपर, गिरिके समान गरिष्ठ (सबसे सम्मानित ) जगतगुरु आरूढ़ हुए। पवनसे गिरते हुए फूलों और निर्भरणों के जलसे ऐसा मालूम होता था कि पर्वत प्रभुको अर्घ्यपाद दे रहा है। प्रभुके चरणोंसे पवित्र बना हुआ वह पर्वत, प्रभुके जन्मस्नात्रसे पवित्र बने हुए मेरसे अपनेको न्यून न मानता था। हर्षित कोकिलादिकके शब्दोंके बहाने मानो वह पर्वत जगतपतिके गुण गा रहा हो ऐसा मालूम होता था। (७८-१०४) __ झाडू लगानेवाले सेवकोंकी तरह वायुकुमार देवोंने उस पर्वतपर एक योजन भूमिके तृण-काष्ठादि दूर किए । मेघकुमार देवोंने पानी लेजानेवाले भैंसोंके समान बादल बनाकर सुगंधित जलसे उस जमीनपर छिड़काव किया। फिर देवताओंने बड़ी बड़ी स्वर्णरत्नोंकी शिलाओंसे, उस जमीनको जड़कर दर्पणतलके समान समतल बना दिया। व्यंतर देवोंने उस जमीनपर इंद्रधनुषके खंडके समान पाँच वर्णके फूल इतने बरसाए कि उनमें घुटनोंतक पैर धंस जाएँ; जमना नदीकी तरंगोंकी शोभाको धारण करनेवाले वृक्षोंके आईपत्रोंके चारों दिशाओं में तोरण बाँधे; चारों तरफ स्तंभोंपर बाँधे हुए मकराकृति तोरण सिंधुके दोनों किनारे रहे हुए मगरोंकी शोभाको धारण करते थे। उस
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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