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________________ भ० ऋपभनाथका वृत्तांत [४३७ स्वरूप छत्र मस्तकपर धारण करूँगा। ये कषाय रहित होनेसे (क्रोध, मान, माया, लोभसे रहित होनेसे) सफेद कपड़े पहनते है और मैं कषायसे कलुषित हूँ; उसकी स्मृतिके लिए काषाय (गेरुआ) वस्त्र धारण करूँगा। इन मुनियोंने पापसे डरकर बहुत जीवोंवाले सचित्त जलका त्याग किया है, पर मेरे लिए तो परिमित जलसे स्नान और पान होगा।” (१४-२२) ___ इस तरह अपनी बुद्धिसे अपने वेषकी कल्पना कर मरीचि ऋषभस्वामीके साथ विहार करने लगा। खच्चर जैसे घोड़ा या गधा नहीं कहलाता मगर दोनोंके अंशोंसे उत्पन्न होता है वैसेही मरीचि भी न मुनि था न गृहस्थ, वह दोनोंके अंशवाला नवीन वेषधारी हुआ । हंसोंमें कौएकी तरह, साधुओंमें विकृत साधुको देख बहुतसे लोग कौतुकसे उससे धर्म पूछते थे। उसके उत्तरमें वह मूल और उत्तरगुणोंवाले साधु-धर्मकाही उपदेश देता था ! अगर कोई पूछता कि तुम इसके अनुसार क्यों नहीं चलते हो, तो वह उत्तर देता था कि मैं असमर्थ हूँ। इस तरह उपदेश देनेसे अगर कोई भव्यजीव दीक्षा लेनेकी इच्छा करता था तो वह उसे प्रभुके पास भेज देता था और उससे प्रतिबोध पाकर आनेवाले भव्य प्राणियोंको, निष्कारण उपकार करनेवाले बंधुके समान, भगवान खुद दीक्षा देते थे। (२३-२८) इस तरह प्रभु के साथ विहार करते हुए मरीचिके शरीर में, एक दिन, लकड़ीमें जैसे घुन लगता है ऐसे, बहुत बड़ा रोग उत्पन्न हुआ। यूथभ्रष्ट कपिकी तरह व्रतभ्रष्ट मरीचिका उनके साथके साधुओंने प्रतिपालन नहीं किया। गन्नेका खेत जैसे विना रक्षकके शूकरादि पशुओं द्वारा अधिक खराव किया जाता है
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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