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________________ भरत बाहुवलीका वृत्तांत [ ४३३ - "हस्तिस्कंधाडिरूढानामुत्येत न केवलम् ।" [हाथीपर सवार पुरुषोंको केवलज्ञान कभी नहीं होता।] (७८५-७८८) इतना कहकर दोनों भगवतियाँ जैसे आई थीं वैसेही चली गईं। इस वचनसे महात्मा बाहुवलीके मनमें अचरज हुआ और वे इस तरह सोचने लगे, "मैंने सभी सावद्ययोगोंका त्याग किया है। मैं वृक्षकी तरह कायोत्सर्ग करके वनमें खड़ा हूँ। फिर मेरे लिएं हाथीकी सवारी कैसी ? ये दोनों आर्याएँ भगवानकी शिष्याएँ हैं। ये कभी झूठ नहीं बोल सकती,तब इसका मतलब क्या है ? अरे हाँ, अब बहुत दिनों के बाद मेरी समझमें आया है कि मैं सोचता रहा हूँ कि जो व्रतमें बड़े होते हुए भी उम्रमें मुझसे छोटे हैं मैं उनको नमस्कार कैसे करूँ ? यह मेरा अभिमान है; यहीहाथी है। इसीपर मैं निर्भय होकर सवार हूँ। मैंने तीन लोकके स्वामीकी चिरकालतक सेवा की; तो भी मुझे विवेकज्ञान इसी तरह नहीं हुआ जिस तरह पानीमें रहनेवाले कर्कट ( केकड़े ) को तैरना नहीं आता है। और इसीलिए मुझसे पहले व्रत ग्रहण करनेवाले महात्मा भाइयोंको 'ये छोटे हैं सोचकर' वंदना करनेकी इच्छा नहीं हुई। अब मैं इसी समय जाकर उन महामुनियोंको वंदना करूँगा । (७८६-७६५) इतना सोचकर उन महासत्व (महाशक्तिशाली ) बाहुबलीने अपना कदम उठाया; उस समय उनके शरीरसे जैसे लताएँ टूटने लगीं ऐसेही उनके घातिकर्म भी नाश होने लगे और उसी समय उनको केवलज्ञान हो गया। हुआ है केवल
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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