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________________ भरत-बाहुबलीका वृत्तांत . [४१६ पुरुषकी तरह, ऊँचे हाथ करके खड़े हुए बाहुबली, क्षणभर सूर्यकी तरफ देखते रहनेवाले तपस्वीकी तरह, भरतकी तरफ देखते रहे। मानो उड़ना चाहते हों ऐसे रूपमें पंजॉपर खड़े होकर उसने गिरते हुए भरतको गेंदकी तरह झेल लिया । उस समय दोनों सेनाओंको उत्सर्ग और अपवादकी तरह, चक्रीके ऊपर उछाले जानेसे खेद और उसकी रक्षासे हर्ष हुआ । ऋषभदेवजीके पुत्रने भाईकी रक्षा करनेका जो विवेक दिखाया उससे लोग उसके विद्या, शील और गुणकी तरह पराक्रमकी भी तारीफ करने लगे। देवता ऊपरसे फूल बरसाने लगे। मगर वीरव्रत धारण करनेवाले पुरुषको उससे क्या ? उस समय, धुएँ और ज्वालासे जैसे आग जुड़ जाती है ऐसेही, भरत राजा इस घटनाके कारण खेद और क्रोधसे युक्त हो गया। (६३२-६४०) उस समय लज्जासे अपने मुखकमलको नीचे झुका भाईका खेद मिटानेके विचारसे बाहुबली गद्गद स्वरमें बोले, "हे जगतपति ! हे महावीर्य ! हे महाभुज ! आप अफसोस न करें। कभी कभी विजयी पुरुषोंको भी दूसरा जीत लेता है; मगर इस कृतिसे मैंने न आपको जीता है और न मैं विजयीही हुआ हूँ। मैं मानता हूँ कि यह वात 'घुणाक्षर न्याय के समान हो गई है। हे भुवनेश्वर ! अब तक आप एकही वीर हैं। कारण 'अमरैर्मथितोप्यन्धिरब्धिरेव न दीर्घिका ।" १-जो बात बगैर प्रयासके सरलतासे हो जाती है उसे धुणाक्षर न्याय' कहते हैं।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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