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________________ 22] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्र: पब ?, मग ५. वाले बाहुवलीन शरम (अष्टापद प) जैसे हाथ को उठा लेना है ऐसही मातको अपने हाथोंम उठा लिया और, हाथी जैसे (किसी छोट) जानवरको अपनी मुंडले अाकारा में उछाल देना है ऐसही, उसे श्राकाशमें उछाल दिया ! - "अहो निरवधिः मा बलिनी बलिनामपि ।" [बलवानाने मी बलवानोंकी उत्पनि निरवधि है। श्रर्थान महाबलवान भी कोई अधिक बलवान पैदा होता ही है।] धनुषसे छू हुए बागाछी नाह या यंत्रम फेंक गए पत्थरकी तरह मत गना आकाराने बट्टन दूर मक गए ! इंद्रक चलाए हुप बन्धकी नाह, नीचे गिरते हुए चक्रीका देवकर, लड़ाई देवनको श्राप हप नमी नेत्ररमाग गया यार उस समय दोनों सेनायामें हाहाबार छा गया। कारण "कथ्य दुखाकरो न ज्यान्महतां ह्यापदागमः।" [जब महायुम्यांपर श्रापनि पानी है नब किसे दुःख नहीं होता है ?] (३१६-३३१) ( डा. भरतको श्राकारामें देख) बाहुबली सोचन लगे, "अं! (मैन वह क्या क्रिया) र दलको विकार है ! बाहुको विश्कार ! महसा काम करनेवालको चित्रकार है। श्रीर से ऋामकी अंना ऋग्नधान्न मंत्रियोंको भी विकार है! अथवा इन समय पट्टी निंदा करनेत्री क्या उन्हान है ? मगर क्यों नहीं मैं अपने बड़े भाईको,पाकाशसे पृथ्वीपर गिरकर टुकड़े टुकड़े हो जाए. इस पहलही, अपने हायपर मलल पला विचार कर बाहुवतीन अपनी दोनों मुनाएँ शैवाकी नाह फैला दी। ॐ हाय करके रह हुए वती
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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