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________________ भरत-बाहुबलीका वृत्तांत mome नहीं गिनने लगे; भूताविष्ट (जिनको भूत-बाधा हुई है ऐसे ) लोगोंकी तरह खच्चर चाबुकोंकी मारकी अवज्ञा करने लगे। इस तरह भरत चक्रवर्तीके सिंहनादसे घबराकर कोई भी स्थिर न रह सका । (५६०-५६६) . उसके बाद बाहुबलीने सिंहनाद किया । सोने वह आवाज सुनी । उन्होंने समझा गरुड़ नीचे उतर रहा है और वह उसके पंखोंकी आवाज है। इसलिए वे पातालसे भी पातालमें घुस जाना चाहते हों ऐसे हो गए। समुद्र के जलजंतुओंने इस . सिंहनादकी आवाजको, मंदराचलको समुद्र में डालकर समुद्र मंथन करनेकी आवाज समझा। इससे वे भयभीत हो गए। कुलपर्वत' उस आवाजको सुनकर इंद्रके वनके शब्दकी भ्रांतिसे अपने नाशकी आशंका कर बार बार काँपने लगे। मृत्युलोकमें रहनेवाले सभी मनुष्य उस शब्दको सुन, पुष्करावतें नामक मेघकी छोड़ी हुई विद्युत्ध्वनि ( बिजलीकी आवाज ) के भ्रमसे पृथ्वीपर इधर-उधर लोटने लगे। देवताओंको उस दुःश्रव (कणकटु) शब्दको सुनकर, भ्रम हुआ कि असमयमेंही दैत्योंका उपद्रव आरंभ हुआ है, उसीका यह कोलाहल है; इससे वे घबरा उठे। यह दुःश्रव सिंहनाद-शब्द मानों लोकनलिकाके साथ स्पर्धा करता हो ऐसे क्रमशः बढ़ने लगा। (५६७-६०२) बाहुबलीका सिंहनाद सुनकर भरतने फिरसे ऐसा सिंहनाद : भारतवर्षमें ७ प्रधान पर्वत हैं। वे सब या उनमेसे एक । नाम ये हैं महेंद, मलय, सह्य. शुक्ति,ऋन्त, विध्य और पारियात्र । साधाः रणतया ये 'कुलाचल' कहलाते हैं।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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