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________________ १४] विषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व है. मर्ग ५. दोनों सेनानि अफसोम और प्रानंदादिम्याई दिए । उस समय बाहुबली ने कहा, गोसा न कहना कि काकतानीय न्यायमें जीत गण हो अगर ऐसा हो तो वाला-युद्ध भी कर लो। बाहुबलीकी यह बात सुनकर परोसे कुचने पसपंकी दरह चक्रीन गुन्ससे कहा, "इस युद्ध में भी मनं तुम विजयी बनो।" (५५- ) जि.जैसे ईशानंदकाल नाद करना है, चाधर्मद्रका हाथी गर्जना करता है, और बनिन ( गजेना) करता है सही, भरत गजान बड़ा सिंहनाद क्रिया। वह सिंहनाद श्राकाशन चारों तरजी व्यान हो गया जसं बड़ी नदी दोनों किनारोंपर बाढ़ नियर पानी फैल जाता है। मालूम होता था, मानों वह नहाई दन्दन श्राप हुए देवनानां विमान गिराता हो; श्राकाशसंग्रह-नत्र व तारायांची भ्रष्ट करता हो, पर्वतोंके ऊन शिवरावाहिता हा थोर समुहका जल उछालता हा। उस सिंहनादची मुनका बुद्धिवाल पुन्य गुनकी पाना न मानत होनसे रथ घाई रशिम ( लगाम ) की संज्ञा करने ला; चार में सवाणा (प्रदेश ) को नहीं मानते ऐसही, हाथी यांची न मानने लग कप भोगी जैकह पदार्थ नहीं जानत लेक, बाई लगाम नगिनत लगः विट (बश्याग्रेनी) जैसे नाज-शरम नहीं गिनत पसंदी, ऊँ नाकी डोरीको १-अचानक नेताहनहीं मिलतामार की रिहाना है,पादितं चार हानकी मंजारना नहीं इंदनगर. कमी हो जाता है, उनमें वह काबाता है किन्दाहीय न्याय यह आम हो गया।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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