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________________ भरत-बाहुवलीका वृत्तांत :४०७ नहीं। कारण, आप दोनों बड़े तेजस्वी हैं इसलिए अधम युद्ध में अनेक लोगोंका नाश होनेसे असमयमेंही प्रलय हुआ है, ऐसा समझा जाएगा। इसलिए आपको चाहिए कि आप दोनों दृष्टियुद्ध वगैरा युद्ध करें। इससे आपके मानकी सिद्धि होगी और लोग नाशसे बच जाएँगे।" ( ५१०-५१७) बाहुबलीने देवताओं की बात स्वीकार की। इसलिए उनकी लड़ाई देखने के लिए, नगरजनोंकी तरह देवता भी उनके पासही खड़े रहे । (५१८) । ___ उसके बाद एक बलवा- छड़ीदार, बाहुबलीकी आज्ञासे गजपर सवार हो, गजकीसी गर्जना कर, बाहुबलीके सैनिकोंसे कहने लगा, "हे वीर सुभटो ! आप एक लंबे अरसेसे चाहते थे वह, स्वामीका काम, वाँछित पुत्रलाभकी तरह, मिला था; मगर तुम्हारे पुण्यकी कमोके कारण देवताओंने अपने राजासे भरतके साथ. द्वेद-युद्ध करनेकी प्रार्थना की; स्वामी खुद भी द्वंद-युद्ध चाहते हैं, ऊपरसे देवताओंने प्रार्थना की, फिर तो कहना ही क्या था ? इसलिए इंद्रके समान पराक्रमी महाराज बाहुबली तुमको लड़ाई न करनेकी आज्ञा देते हैं। देवताओंकी तरह तुम भी तटस्थ रहकर हस्ति-मल्ल (ऐरावत) के जैसे एकाँगमल्ल (महापराक्रमी) अपने स्वामीको युद्ध करते देखो और वक्र बने हुए ग्रहोंकी तरह तुम अपने रथों, घोड़ों और पराक्रमी हाथियों को वापस करदो। सर्प जैसे करंडिकाओंमें डाले जाते हैं वैसे. ही, तुम अपनी तलवारें न्यानोंमें डालो, केतुओंके समान अपने भालोंको उनके कोशोंमें डालो, हाथियोंकी सूंडोंके जैसे अपने मुद्गरोंको हाथों में न रखो, ललाटसे जैसे अकुटी उतारी जाती
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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