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________________ भरत-बाहुबलीका वृत्तांत [४०३ - - देवताओंने कहा, "राजन् ! लड़ाईका सबब कोई बड़ाही होगा, कारणं, आपके समान पुरुप छोटीसी बातके लिए कभी ऐसी प्रवृत्ति नहीं करते । अब हम बाहुबलीके पास जाकर उन• को उपदेश देंगे और युगके क्षयकी तरह इस होनेवाले जननाशकी रक्षा करेंगे। शायद वे भी आपकीही तरह लड़ाई के दूसरे कारण यताएँगे; तो भी आपको ऐसा अधम युद्ध नहींही करना चाहिए । महान पुरुषोंको तो दृष्टि, वाणी, बाहु और दंडादिकसे (आपसहीमें ) लड़ाई करनी चाहिए कि जिससे निरपराध हाथी ( व मनुष्य ) वगैरा प्राणियोंका नाश न हो।" (४७१-४७४) . : भरत चक्रवर्तीने देवताओंका यह कथन स्वीकार किया। तब वे दूसरी सेनामें बाहुवलीके पास गए और (उसे देखकर) आश्चर्यसे विचार करने लगे कि अहो ! यह बाहुबली तो दृढ़ गुणोंवाली मूर्तिहीसे अर्जित है; फिर कहने लगे हे ऋषभनंदन ! हे जगत-नेत्ररूपी चकोरके लिए श्रानंद देनेवाले चंद्र ! आप चिरकालतक विजयी हों और आनंदमें रहें। आप समुद्रकी तरह कभी मर्यादा नहीं छोड़ते और कायर 'आदमी, जैसे लड़ाईसे डरते हैं ऐसेही, आप अवर्णवाद (निंदा) से डरते हैं। आपको संपत्तिका अभिमान नहीं है, दूसरोंकी दौलतसे आपको ईर्षा नहीं है. दुर्विनीत आदमियोंको आप दंड देनेवाले हैं और जगतको अभय बनानेवाले ऋषभस्वामीके आप योग्य पुत्र हैं। इसलिए इन दूसरे लोगोंके नाश करनेका काम करना आपके लिए योग्य नहीं है। आपने अपने बड़े भाईसे भयंकर लड़ाई ठानी है। यह उचित नहीं है । और अमृतसे जैसे
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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