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________________ ४०२ 7 नियष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व १ सर्ग ५.. अधिक तेल होनेसे वह पर्वतपर नहीं लगाया जाता । भरतखंड की छःखंड पृथ्वीके राजाओंको जीत लेनेसे मेरा कोई प्रतिस्पर्धी नहीं रहा ऐसा मैं नहीं मानता,कारण कि शत्रुके समान प्रतिस्पर्धी, और हार-जीतके कारणभूत बाहुबलीके और मेरे बीच भाग्यसे जातिभेद (विरोध) हुआ है। पहले निंदासे डरनेवाला, लज्जालु, विवेकी, विनयी और विद्वान बाहुबली मुझे पिताकी तरह मानता था; मगर साठ हजार वर्षके बाद मैं दिग्विजय करके आया तब मैंने देखा कि बाहुबली बहुत बदल गया है। अब वह दूसरा ही हो गया है। ऐसा होनेका कारण मेरे खयालसे इतने समयतक हमारा आपसमें नहीं मिलना है। बारह बरस तक राज्याभिषेकका उत्सव रहा, वह नहीं आया। मैंने समझा, आलस करके नहीं आया है। फिर उसको बुलानेके लिए दूत भेजा, तो भी वह नहीं आया। तब मैंने सोचा, इसमें मंत्रियोंके विचारका दोष होगा। मैं उसको कोपसे या लोभसे नहीं बुला रहा था; मगर चक्र उस समय तक शहरमें नहीं घुसता जबतक एक भी राजा चक्रवर्तीके आधीन हुए बिना रह जाता है । इसलिए मैं किंकर्तव्यमूढ़ हो रहा हूँ। इधर चक्र नगरमें नहीं घुसता और उधर बाहुबली नहीं झुकता। ऐसा जान पड़ता है मानों दोनों स्पा कर रहे हैं। मैं तो बड़े संकट में हूँ। मेरा मनस्वीभाई एक बार मेरे पास श्रावे और अतिथिकी तरह पूजा ग्रहण करे इच्छानुसार दूसरी भूमि मुझसे ले । चक्रके नगरप्रवेश न करनेहीसे मुझे लंड़ना पड़ रहा है। लड़ाईका दूसरा कोई कारण नहीं है। और उस न झुकनेवाले भाईसे मुझे किसी तरहका मान पानेकी इच्छा भी नहीं है।" (४५६-४७०)... .
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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