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________________ ३२] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पत्र १ मगं ५. लगे, वे यमराज दावोस जान पड़ने थे। (३२५-३४१) उन समय राजा अधिकारी याना देने लगे, "मनाक पीछे हथियागेर मरी गाड़ियों और लदे ॐ शीत्र जाओ, अन्यथा बड़ी तेजीने हथियार चन्द्रानेवाले वीगंक पास हथियार नहीं रहेगे; कवचों (बलरों) से लदे हम ॐ भी देजाओ; कारण लगातार युद्ध करत रहनवान्न मुमटोंके पहलेसे पहने हुए कवत्र हट जाएंगे, रवी पुनयोंकि पीछे दूसरे नैयारस्य ने जानो; कारण शत्रोंस रथ इसी तरह टूट जान लेने पर्वतन रथ टूट जान हैं। पहले घोई यक जाग नो सवार दूर थोडॉपर सवार होकर युद्ध चालू रख सके, इसके लिए सैकड़ों घोड़े सबागें पीछे जाने लिए तैयार ऋगे। हरेक मुकुटबंध राजाके पीछे नानके लिए हाथी नेवार खो; कारण एक हाथ से, लड़ाईमें उनका नाम नहीं चनंगा । निपाहियोंक पीछे पानी मेंजानेवाले मैंस नेचार लो; कारण लड़ाई के अमरूपी ग्रीन ऋतुसे नपकर यवराय हुप वारा लिए वे प्याओंका काम देगः श्रीपधिपति चंद्रमा मंडार जैसी और हिमगिरिक सार नेमी नाना परोहिणी (वाव मिटानेवाली दवाइयोन्त्री बोरियाँ उठाओ। इस नन्ह उनकोलाहलस लड़ाइड बाजों शब्दमयी महासमुनमें चार आगया। उस समय सारी दुनिया, चारों तुरस्त होनेवाली ऊँची आवाजोसे मानों शहनय मी यार. चमकते हुए इथियारोंसे मानों लोहनय हो ऐसी, माबुम होने लगी। मानों नित्र श्रॉन्वोंने देवा हो इस तरह प्राचीन पुरुषों के चरित्रोंका स्मरण गनेवा च्यामकी तरह रणनिवाहका चानी
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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