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________________ भरत-याहुघलीका वृत्तांत [३६१ चलेगी, अपने रथोंको हथियारोंसे भरने लगे; कई दूरसेही पहचाने जासके इससे वे अपने चिह्नवाली ध्वजाओंके खंभोंको मजबूतीसे बाँधने लगे; कई अपने मजबूत धुरीवाले रथोंमें, शत्रुसेनारूपी समुद्र में रस्ता बनाने के लिए, जलकांत रत्नके' समान, घोड़े जोड़ने लगे; कई अपने सारथियों को मजबूत कवच देने लगे । कारण,"सरथ्या अपि हि रथा निःफलाः सारथिं विना ।" घोड़े जुड़ा हुआ रथ भी सारथीके बिना बेकार होता है। कई मजबूत लोहेके कंकणों की श्रेणीके संपर्कसे-यानी हाथियोंके दाँतोंमें लोहेकी चूड़ियाँ पहनाई जाती हैं इससे-कठोर बने हुए हाथियोंके दानोंको अपनी भुजाओंकी तरह पूजने लगे; कई मानों मिलनेवाली जयलक्ष्मीका निवास स्थान हो इस तरहके, ध्वजाओंवाले होदे हाथियोंपर वाँधने लगे; कई सुभट, हाथीके गंडस्थलसे, तत्कालही निकले हुए मदसे, 'यह शकुन है' कहकर, कस्तूरीकी तरह तिलक करने लगे; कई दूसरे हाथियोंके मदकी गंधसे भरी हुई हवा भी सहन नहीं करनेवाले, मनके समान महान दुर्धर हाथियोंपर चढ़ने लगे; और सभी महावत मानों रणोत्सवके श्रृंगारवस्त्र हों ऐसे, सोनेके कंटक ( कड़े ) हाथियोंको पहनाने लगे; कइयोंने हाथियोंकी सैंडोंसे ऊँची नालवाली, और नीलकमलकी लीलाको धारण करनेवाली, यानी नीलकमलके समान दिखाई देनेवाली, लोहेकी मुद्गरें भी हाथियोंके (दाँतोंपर ) बाँधी और कई महावत काले लोहे के तीक्ष्ण (कीलों वाले ) कोश (आच्छादन) हाथियोंके दाँतोंमें पहनाने १-ऐसा रत्न जो हवाकी तरह पानीको हटाता है।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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