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________________ भरत-बाहुघलीका वृत्तांत [३८१ के समान जगतमें सुर, असुर या नर कोई नहीं है । तीन लोकके नाथका पुत्र और मेरा छोटा भाई बाहुवली तीनलोकको तिनकेके समान समझता है । यह उसकी (झूठी) तारीफ नहीं सत्य बात है। ऐसे छोटे भाईके कारण मैं भी प्रशंसा पाने योग्य हूँ; कारण एक हाथ छोटा हो और दूसरा बड़ा हो तो वे नहीं शोभते । यदि सिंह बंधनको स्वीकार करे और अष्टापद वशमें हो जाए तो वाहुबली भी वशमें आ जाए; अगर ये वशमें श्राजाएँ तो फिर कमी किस बातकी रहे ? उसके अविनयको मैं सहन करूँगा। ऐसा करनेसे शायद लोग मुझे कमजोर कहेंगे तो भले कहें। सभी चीजें पुरुषार्थसे या धनसे मिल सकती हैं। मगर भाई और खास करके ऐसा भाई किसी तरहसे भी नहीं मिल सकता। हे मंत्रियो ! ऐसा करना मेरे लिए योग्य है या नहीं ? तुम वैरागीकी तरह क्यों मौनधारे हो ? जो यथार्थ वात हो सो कहो।" (२३१-२३८) वाहुवलीके अविनयकी और अपने स्वामीकी ऐसी क्षमाकी बातें सुनकर, मानों वह प्रहारसे दुखी हुआ हो ऐसे, सेनापति सुपेण बोला, "ऋपभस्वामीके पुत्र भरतराजाके लिए क्षमा करना योग्य है; मगर वह करुणाके पात्र आदमीको करना योग्य है । जो जिसके गाँवमें रहता है वह उसके वशमें रहता है मगर बाहुबली एक देशका राज्य करते हुए भी वचनसे भी आपके वशमें नहीं है । प्राणोंका नाश करनेवाला होते हुए भी प्रतापको बढ़ानेवाला दुशमन अच्छा मगर अपने भाईके प्रतापका नाश करनेवाला भाई भी बुरा । राजा भंडार, सेना, मित्र, पुत्र और शरीरसे भी (यानी इनका बलिदान करके भी) अपने
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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