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________________ ३५०] त्रिषष्टि शलाका गुरुप-चरित्रः पत्र १. सर्ग५, t . . . . तरह असहा हैकिसी दूसरेकी वीरताको वे सह नहीं सकते हैं। उनकी समामें इंद्रके सामानिक देवनाओं की तरहद्दी, सामंत राजा भी महापराक्रमी है, इसलिए उनके अभिप्रायसे इनका अभिप्राय भिन्न नहीं है। उनके राजकुमार भी राजतेजके अत्यंत अमिमानी हैं। उनकी भुजाओं में लड़ाइकी वुजनी चल रही है, इसलिए मालूम होता है कि ये बाहुबलीसे भी दस गुन अधिक बलवान हैं। उनके अभिमानी मंत्री भी उन्हीं के समान विचार रखते हैं। कहा है कि "यादृशो भवति स्वामी परिवारोऽपि तादृशः" जैसे नामी होते हैं वैसाही उनका परिवार (कुटुंबी और संत्रक वगैरा ) भी होता है।] सनी त्रियाँ जैसे परपुरुपको सहन नहीं करती हैं वैसही, उनकी अनुरागी प्रजा भी यह नई जानती कि दुनिया में कोई दूसरा राजा भी है। कर देनेवाले, वेगार करनेवाले और देश दुसरे सभी लोग भी अपने राजा की भलाईके लिए प्राण तक देनची इच्छा रखते हैं। सिंहाक तरह बनाम और पर्चतमि रहनेवालवीर भीउनके वशम हैं श्री चाहते हैं कि उनके रानाका मान किसी तरह कम न हो। स्वामी! अधिक क्या कहूँ वे महावीर दर्शनकी इच्छास नई मगर बड़ाईकी इच्छा श्रापको देखना चाहते हैं। अब आप जैसा चाहे चैमा करें। कारण दृतलोग मंत्री नहीं होने के सिप सत्य संदेश पहुँचाने के लिएही होते हैं। (२१३-२३०) ये बातें सुन भरत राना, सूत्रधार (नट) की तरह एकई समयमें, अचरज,कोप, चना और हर्षका अभिनय कर, बोल "मैंने बचपन में खेलते समय यह अनुभव किया है कि बाहुबली
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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