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________________ भरत-बाहुबलीका वृत्तांत [३७३ मिट्टीके ढेलेकी तरह आकाशमें उछाल दिया था। आकाशमें बहुत ऊँचे जानेपर फिर नीचे गिरकर मर न जाएँ इस खयालसे, नीचे आते समय मैंने उन्हें फूलकी तरह झेल लिया था; मगर इस समय उनके द्वारा जीते गए राजाओंके चाटु भाषणोंसे, मानों दूसरा जन्म पाए हों इस तरह, वे सभी बातें भूल गए हैं। परंतु वे सभी चाटुकार भग जाएँगे और उनको अकेलेही बाहुबलीकी भुजाओंसे होनेवाली वेदना सहनी पड़ेगी। हे दूत ! तुम यहाँसे चले जाओ। राज्य और जीवनको इच्छासे वे भले यहाँ श्रावें । मैं, पिताजीने जो राज्य दिया है उसीसे संतुष्ट हूँ। उनके राज्यकी मुझे इच्छा नहीं है; इसीलिए मैं वहाँ आनेकी जरूरत भी नहीं देखता।" (१२१-१५४) बाहुबलीके इस तरह कहनेसे, स्वामीके दृढ़ आज्ञारूपी बंधनमें बंधे हुए, चित्र-विचित्र शरीरवाले दूसरे राजा भी क्रोधसे आँखें लाल करके सुवेगको देखने लगे। राजकुमार गुस्सेसे 'मारो!मारो! कहते हुए और होठोंको हिलाते हुए एक अनोखेही ढंगसे उसको देखने लगे। अच्छी तरहसे कमर कसे और तलवारें हिलाते हुए अंग-रक्षक,मानों मार डालना चाहते हों इस तरह, आँखें तरेर कर सुवेगको देखने लगे; और मंत्री यह चिंता करने लगे, कि महाराजका कोई साहसी सिपाही इस दूतको मार न डाले। उसी समय छड़ीदारका कदम उठा और हाथ ऊँचा हुआ,ऐसा लगा मानों छड़ीदार दूतकी गरदन पकड़नेको उत्सुक है (मगर नहीं)छड़ीदारने उसे हाथ पकड़ आसनसे उठा दिया। इस व्यवहारसे सुवेगके मनमें क्षोभ हुआ, क्रोध आया मगर वह धैर्य धरकर सभासे बाहर निकला । कुपित बाहुबलीके कठोर शब्दों
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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