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________________ प्रथम भव-धन सेठ १३. - - फिर उसने अपने रसोइयोंको आशा दी, "इन आचार्य महाराजके लिए तुम हमेशा अन्न-पानादि तैयार करना।" ":. : आचार्य बोले, "साधु ऐसा आहार-पानी लेते हैं जो उनके लिए न बनाया गया हो. न बनवाया गया हो, या ने संकल्प ही किया गया हो। हे सेट, कूमा, बावड़ी और तालाबका जल भी-यदि अग्नि वगैरा से अचित न बनाया गया हो तो-साधु ग्रहण नहीं करते। यही जिन शासनका विधान है !(५६-५७). - उसी समय किसीने आमोसे भराहुआ थाल लाकर सेटके सामने रखा । उन पके हुए आमोंका सुन्दर रंग संध्याकालके फटे हुए वादलोंकासा था । सेठने बड़े आनंदभरे मनसे आचार्यको कहा, "आप' ये फल स्वीकार कर मुझे उपकृत कीजिए।" ___आचार्यने कहा, "हे श्रद्धालु, ऐसे सचित फलोको खानकी बात तो दूर रही स्पर्श करना भी साधुओंके लिए वर्जित है।" . . सेठने कहा, “आप किसी महा कठिन व्रतके धारी हैं। ऐसे कठिन व्रतको चतुर मनुष्य तक, अगर वह प्रमादी होता है तो, एक दिन भी नहीं पाल सकता। फिर भी आप साथ चलिए। मैं आपको वही आहार दूंगा, जो आपके लिए ... ग्राह्य होगा।” इस तरह कह, उसने वन्दना करके मुनिको विदा किया । [५८-६२] .... सेठ अपने चंचल घोड़ों, ऊँटो, गाड़ियों और बैलोंके साथ इस तरह आगे बढ़ा जैसे समुद्र [ज्वारके समय ].
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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