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________________ २४ विषष्टि शलाका पुरुप-चरित्र. पर्व १. सर्ग .. - - होगी उनको सवारी देंगे, जिनको मददकी जरूरत होगी उनको मदद देगे और जिनके पास पाथेय. (यात्राकी चीजें यार खरचके लिए चन) नहीं होगा उनको पायेय देंगे, मार्गमें चोरों, लुटेरों और शिकारी जानवरोले रक्षा करेंगे, तथा जो अशक्त व गंगी हॉग उनकी अपने भाईकी तरह सेवा-शुपा करेंगे।" (22-१८) : फिर जब अलवान स्त्रियान कल्याण करनेवाली मंगल. विधि की तब बह रथम बैठकर शुभ मुहर्तमें घरसे रवाना 'हुआ और शहर के बाहर आया। (४२) विदा होते समय ढोल बजा । उसकी आवाजको लोगोंने “चुलाबा करनेवाले लोगोंकी आवाज समझा। बसंतपुर जानेकी इच्छा रखनेवाले समी शहरके बाहर, आकर. जमा हो गए। (५०) उसी समय साधुचर्यासे और धर्मसे पृथ्वीको पवित्र करते हुए धर्मघोष याचार्य सेठके पास याप! उनका मुखमंडल सूर्यकी क्रांतिके समान सेजम्बी था। - उनको देखकर सेट आदरसहित बड़ा हुआ। उसने विधि पूर्वक हाथ जोड़कर आचार्यको. वंदना की और धानेका 'कारण पूछा। ___आत्रायने कहा, "हम तुम्हारे साथ वसंतपुर आएंगे।" सुनकर लेट योला, "हे भगवन, याज में अन्य या । (जैस) साथ रन्नने लायक (धर्मात्मामाकी मुझे आवश्यकता थी वैसे) आप मेरे साथ चल रहे हैं। आप बड़ी खुशीसे मेरे साथ चलिए।". . . . . . . .:: :
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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