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________________ - - ३२. निरष्टि राजाच्या पुच्च-चरित्रः पर्व १. सर्ग १. ओई श्राश्य न बहनसे श्राश्रय देने योग्य भरत रानाकी शरणमें गम। उन्होंन, मानों नेनपतचा भार हो ऐसा स्वर्णकार और मानों अश्वान प्रतिबिंब हो पसे लालों बाड़े मरत गानाके भेट त्रिपनिहाय जोड़, सरकुत्रासुन्दर वचनोंसे गर्मिन वाण, मानों के बंदीजनों (वारों के सगे भाई हाँ गंडे, बान्न, जगप्रति ! अन्वंद प्रचंड पराक्रमी ! आपकीजयं होखिंड यूवी में आप इंदकं समान है । हे राजा ! हमारे प्रदेशक निलकं समान बैनाध्यपवनच गुन-धार श्राप सिवा दूसरा कौन ब्रांन्त मनाया? ई विजयी गाजा ! अाकाशने व्यानिश्चमकी तरह जलपर मारी सेनाकी छावनी रन्तनकी शक्ति किसमें है ? यानी ! अद्भुत शक्तिकं कारण श्राप देवनानास मी अंजेय है। यह बात हम अब समझ है। इस लिए हम प्रहानियाँमार अपराव दुना कीजिए। नाय ! नया जीवन देनवान श्राप अपना हाथ हमारी पाठपर रखिए ! याब हम पापी पादन रहना न्यवित (कामका विचार • कानान्त) मगढ़ महाराजन उन्हें अपने अधीन माना और उनी, सन्कार कर विदा किया । कहा है "..."उत्तमानां हि प्रणामावषयः वः।" जतन धुषांना नोय प्रणामकी अवधि तक ही रहता है। अयान बिराचा जत्र नक नुक नहीं जाता तमी त उच्चन पुरुष उसपर नागन रहता है। बच्चों की पान सेनापति मुंषेश गिरि नया समुद्री भादाबाद सिंधुके उत्तर निष्कृत (द्वार) तक सपत्री नीत श्राया। ऋची भरत मुत्र भोग मागन हुए.वही पहन समय नरहमानों के अपनी गनिन
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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