SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 308
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८४ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्र; पर्व १. सर्ग ४.. शक्तिवाले चर्मरत्न और छत्ररत्न-ये सब महाराजके साथ चले। अपनी ज्योतिसे, सूरज और चाँदकी तरह अंधकारका नाश करनेमें समर्थ मणि और कांक्रिणी नामके दो रत्न भी चने; और मुरों व असुरोंके श्रेष्ठ अन्नोंके सारसे बनाया गया हो ऐसा प्रकाशित खड्गरत्न नरपति के साथ चलने लगा । (४०-४७) सेना सहित चक्रवर्ती भरतेश्वर प्रतिहारकी तरह चक्र के पीछे पीछे चला । उस समय ज्योतिषियोंकी तरह अनुकूल पवनने और अनुकूल शकुनोंने सब तरहसे उसके दिग्विजयकी सूचना दी। किसान जैसे इलसे जमीनको समान करता है वैसे सेनाके आगे चलते हुए मुपेश सेनापति दंडरत्नसे आसमान रस्तोंको समान करता नाता था। सेनाके चलने से उड़ी हुई रजसे दुर्दिन (धूलिपूणे) बना हुआ श्राकाश रथों और हाथियोंपर उड़ते हुए पताकाम्पी बगुलोंसे सुशोमित होता था। जिसका अंतिम भाग दिखाई नहीं देता ऐसी चक्रवर्तीकी सेना निरंतर बहनेवाली, दूसरी-गंगा नदी मालूम होती थी ! दिग्वि"यके उत्सवक लिए, रथ चीत्कार शब्दोंसे, घोड़े हिनहिनाइटसे और हाथी गर्जनायोंसे, आपसमें शीघ्रता करने लगे थे। सेनासे रज उड़ती थी, तो भी सवारोंके माने उसमें चमक रहे थे वे मानो ढकी हुई सुरजकी किरणांका परिहास कर रहे थे। सामानिक देवताओंसे घिरे हुए इंद्रकी तरह मुकुटधारी और भक्तिवान रानात्रास घिरा हुआ रानकुंजर(राजाओंमें श्रेष्टोमरत बीचमें शोमता था। चक्र पहले दिन एक योजन चलकर रुक गया। तभीसे उस प्रयापक अनुमानस योजनकी नापचली हमेशा एक एक योजन चलते हए राजा भरत कई दिनों बाद गंगाके दक्षिण किनारक
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy