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________________ . भरत चक्रवर्तीका पत्तांत ... [२८३ - जातिवंत हाथीने गंभीर गर्जना की। मानों आकाशको पल्लवित करते हों वैसे दोनों हाथ ऊँचे कर बंदीवृंदने (चारणोंके समूहने) एक साथ जय-जय शब्दका उच्चारण किया। जैसे वाचाल गायक पुरुष अन्य गानेवालियोंको गवाता है, वैसेही दुदुभि ऊँची आवाजसे दिशाओंसे नाद कराने लगा। और सभी सैनिकोंको बुलानेके काममें दूतरूप बने हुए दूसरे मंगलमय श्रेष्ठ बाजे भी बजने लगे। धातुसहित पर्वत हों वैसे, सिंदूर धारण करनेवाले हाथियोंसे, अनेक रूप बने हुए रेवंत अश्वों (सूर्यके घोड़ों) का भ्रम करानेवाले अनेक घोड़ोंसे, अपने मनोरथके समान विशाल रथोंसे, और सिंहोंको वशमें किए हों वैसे पराक्रमी प्यादोंसे अलंकृत महाराजा भरतेश्वरने, मानो वे सैनाके (पैरोंसे) उड़ती हुई धूलिसे दिशाओंको दुपट्टेवाली बनाते हों वैसे, पूर्व दिशाकी तरफ प्रयाण किया । (१४-३६) उस समय आकाशमें फिरते हुए सूर्यके बिंब जैसा, हजार यक्षों द्वारा अधिष्ठित ( सेवित) चक्ररत्न सेनाके आगे चला। दंडरत्नको धारण करनेवाला सुषेण नामका सेनापतिरत्न अश्वरत्न पर सवार हो चक्रकी तरह आगे चला। शांति करानेकी (अनिष्टोंको मिटानेकी) विधिमें देहधारी शांतिमंत्र हो वैसा पुरोहितरत्न राजाके साथ चला। जंगम अन्नशालाके समान और सेनाके लिए हरेक मुकाम पर उत्तम भोजन उत्पन्न करने में समर्थ गृहपतिरत्न; विश्वकर्माकी तरह शीघ्रही स्कंधावार (सेनाके लिए रस्तेमें रहनेकी व्यवस्था) करने में समर्थ वर्द्धकिरत्न और चक्रवर्तीकी स्कंधावार (छावनी) के प्रमाण (लंबाई, चौड़ाई पौर ऊँचाई) के अनुसार विस्तार पानेकी (फोटा पड़ा होनेकी)
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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