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________________ भ० ऋपभनाथका वृत्तांत [२६१ को कमाका नाश करने में मददगार हो रहे हैं। अगर आपको मेरी बातपर विश्वास न हो तो, थोड़ेही समयमें आप जब अपने पुत्रके केवलज्ञानके उत्सवकी बात सुनेंगी तव विश्वास हो जाएगा। (५०५-५१०) उसी समय चोबदारने भरत महाराजको यमक और शमक नामक पुरुषोंके आनेकी सूचना दी। उनमेंसे यमकने भरत-राजाको प्रणाम कर निवेदन किया, "हे देव ! आज पुरीमलताल नगरके शकटानन उद्यानमें युगादिनाथको केवलज्ञान उत्पन्न हुआ है। ऐसी कल्याणकारी बात निवेदन करते मुझे मालूम होता है कि भाग्योदयसे आपकी अभिवृद्धि हो रही है।" शमकने ऊँची आवाजमें निवेदन किया, "आपकी आयुधशालामें अभी चक्ररत्न उत्पन्न हुआ है।" सुनकर भरत राजा थोड़ी देरके लिए इस चिंतामें पड़े कि उधर पिताजीको केवलज्ञान हुआ है और इधर चक्ररत्न उत्पन्न हुआ है, पहले मुझे किसकी पूजा करनी चाहिए ? मगर कहाँ जगतको अभय देनेवाले पिताजी ! और कहाँ प्राणियोंका नाश करनेवाला चक्र ! इस तरह विचार कर उनने पहले पिताजीफी पूजा करनेके लिए जानेकी तैयारी करनेकी आज्ञा दी, यमक और शमकको बहुतसा इनाम देकर विदा किया और फिर मरुदेवी मातासे निवेदन किया, "देवी! आप सदा करुणवाणीमें कहा करती थीं कि मेरा भिक्षा-आहारी और एकाकी पुत्र दुःखका पात्र है; मगर अब वे तीनलोकके स्वामी हुए हैं। उनकी सम्पत्ति देखिए।" ऐसा कहकर उनको हाथीपर सवार कराया। (५११-५१६)
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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