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________________ भ० ऋषभनाथका वृत्तांत . [२४७ . . . .. .... अंदर पहने हुए वस्त्रोंसे वह शोभते थे । लक्ष्मीका आकर्षण करने के लिए क्रीडा करनेका शस्त्र हो वैसा वज्न यह महाबाहु अपने हाथोंमें फेररहे थे। और बंदीजन (चारण भाट वगैरा) जय-जयकारसे दिशाओंके मुखको भर रहे थे (दिशाएँ जयजयकार शब्दसे गूंज रही थीं।) इसतरहसे राजा बाहुवली उत्सवपूर्वक स्वामीके चरणोंसे पवित्र बने हुए बगीचे के पास आये । (३४५-३६५) . फिर, आकाशसे गरुड उतरता है वैसे उनने हाथीसे उतर छत्रादि राजचिह्नोंका त्याग कर उपवनमें प्रवेश किया । वहाँ उनने विना चंद्रके आकाशकी तरह, और अमृत-रहित सुधाकुंडकी तरहं विना प्रभुका उद्यान देखा । (प्रभु के दर्शनोंकी) बड़ी इच्छावाले बाहुबलीने उद्यानपालकोंसे पूछा, "आँखोंको आनंद देनेवाले भगवान कहाँ है ?" उन्होंने जवाब दिया, "वे तो रातकी तरहही कहीं आगेकी तरफ चले गए हैं। हमने जब यह बात जानी तब हम आपको समाचार देने आनेही वाले थे, इतनेमें आपही यहाँ पधार गए।" . यह बात सुन तक्षशिला नगरीके राजा बाहुबली ठुडीपर "हाथ रख आँखोंमें आँसू भर,दुखी दिलसे इसतरह सोचने लगे, "हाय ! आज परिवार सहित प्रभुकी पूजा करने का मेरा मनोरथ, ऊसर भूमिमें बोए हुए वृद्ध बीजकी तरह बेकार हुभा । लोगोंपर अनुग्रह करनेकी इच्छासे मैंने यहाँ पहुँचने में बहुत देरी की, इसलिए मुझको धिक्कार है ! इस स्वार्थके नाश होनेसे मेरी मूर्खताही प्रकट हुई है। स्वामीके चरण-कमलोका दर्शन करनेमें अंतराय डालनेवाली इस वैरिन रातको और मेरी मतिको
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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