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________________ २४ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुप-चरित्रः पय १. सगं. श्रागे चलकर मार्ग दिवाना था। नामरणसि भूपित श्रीदेवीके पुत्रक ममान असंख्य साहकार घोड़ोंपर सवार होकर उनके पीछे चलनेको नैयार हो रहे थे, और लेग पर्वतकी शिलाकी पीठपर जवान सिंह बैठता है बैंमुद्री इंद्रके समान बाहुबली राजा मद्र, जातिक अच्छस अच्छ, हाथी पर सवार हुए थे। शिंग्वरसे जैसे पर्वत शामना है सही मन्तकपर तरंगित क्रांतिबाले रत्नमय मुकुट से बह मुशोभित हो रहे थे। उनने मोतियाँक दो झंडल धारण किए थे, वेगम जान पड़त थे मानों उनके मुखकी शोभा द्वारा जीन हुए दो चाँद उनकी संवाद लिए, श्राप है। लक्ष्मी मंदिराप हदयपर स्थूल मुक्ता-मणिमय हार. उनने पहना था, वह मंदिर किन जान पड़ने थे। हाथाके मुलमें उत्तम सानको बाजूबंद ; उनसे ऐसे मालूम होत थे कि भुजारुपी वृत्त, बाजूबंधपी लनास वेष्टित कर, मजबूत बनाया गया थाहाकि मग्गियोंपर (कलाइयोपर) मुक्तामणिके दो अंकग बंध थ, वहावण्यमयी सरिताके तौरपर फनक समान जान पड़त था और अपनी कांनियाकाशको चमकानवाली दो अंगठियाँ जनन पहनी थी, जो गली शोमती श्री माना वैमापक फलांकी मी शोभावाली बड़ा दो मणियाँ हाँ। उनने शरीरपर, बारीक धार सफद कपड़ा पहना था; मगर शरीरपर, किंग हा चंदन नपस उसका मंद किसीको मालुम नहीं होता था। पूनोंका चाँद जैसे चाँदनीको धारण करता है वैसही, गंगाके नरंगसमूहस स्पा करनेवाला मुंदर बन्नटुपट्टा उनने श्राहा था 1 नाह नरहको धानुमय अासपासकी भूमिग जैसे पर्वन शोयना वसही विचित्र गोत्राले सुन्दा,
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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