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________________ . . ० ऋषभनाथका वृत्तांत २४३ - - तीर्थंकर थे। उनसे प्रभुने दीक्षा ली, फिर मैंने भी दीक्षा ली थी। उस जन्मकी यादसे ये सारी बातें मैंने जानी है; इसी तरह गई रातको मुझे, मेरे पिताको और सुवुद्धि सेठको जो सपने आए थे उनका मुझे यह प्रत्यक्ष फल मिला है । मैंने सपनेमें श्याम मेरुको दूधसे धोया देखा था, इससे इन प्रभुको-जो तपसे दुर्बल हो गए थे-मैंने इक्षुरससे पारणा कराया। और इससे ये शोभने लगे। मेरे पिताने शत्रके साथ जिनको लड़ते देखा था वे प्रभुही हैं और उन्होंने मेरे कराए हुए पारणेकी मददसे परिसह रूपी शत्रुओंको हराया है। सुबुद्धि सेठने सपना देखा था कि सूर्यमंडलसे गिरी हुई सहस्र किरणोंको मैंने वापस आरोपित किया; इससे सूर्य अधिक शोभने लगा। प्रभु सूरजके समान हैं। सहस्त्र किरणरूप केवलज्ञान' नष्ट हो रहा था, उसे आज मैंने प्रभुको पाराणा कराके जोड़ दिया है। इसीसे भगवंत शोभने लगे हैं।" श्रेयांसकी बातें सुनकर सबने "बहुत अच्छा ! बहुत अच्छा !" कहा। फिर वे सब अपने अपने घर गए। ( ३२०-३२६) - श्रेयांसके घर पारणा करके जगत्पति स्वामी वहाँसे दूसरी जगह विहार कर गए । कारण,छमस्थ तीर्थंकर कभी एक जगह नहीं रहते। भगवानके पारणा करनेकी जगहका कोई उल्लंघन न करे इस खयालसे श्रेयांसने उस स्थानपर एक रत्नमय पीठिका (चबूतरा). वनवाई । और उस रत्नमय पीठिकाकी प्रभुके साक्षात : १-प्रभुको श्राहारका अंतराय था। श्राहारके बिना शरीर नहीं टिकता और शरीरके बिना केवलज्ञान नहीं होता। इसलिए कहा गया है कि श्राहार देकर श्रेयांस कुमारने नए होते हुएं केवल ज्ञानको जोड़ दिया है। ....... :
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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