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________________ का ४ त्रिपष्टि शलाका पुरुष-चरित्र. पर्व १. सर्ग १. कारण हो । (नुमको उस मूर्तिक कारणले मानरूपी लक्ष्मी मिले।) करामलकवद्विश्वं, कलयन् केवळश्रिया । अचित्यमाहात्म्यनिधिः, मुविधिधियन्तु वः ।।११।। इस इलोकमें आप. हुए. करामलकवद्विश्वं पद का समास दो तरहसे करके, दो तरहसे उसका अर्थ किया जाता है। (१) कर+आमलक+व+विश्व-हाथमें रखे हुए आँवकेकी तरह विश्वको (२) कर+अमल++ +विश्व [कर-हाथ; अमलनिर्मल, क-अल, बत-तरह; विश्व-जगतको ] हाथमे गये हुए निर्मल जलकी तरह जगतको । [.. जो हायमें रखे हुए आँचलकी नगह जगनको, अपनी केवलहानश्रीसे जाननेवाले हैं और जो चिंतनीय (जिसकी कल्पना मी न की जा सके से) प्रभावका खजाना है । सुविधिनाथ मंगवान तुम्हें सम्यकाल पानमसहायक हों। २.जो हाथमे रन्च हुप निर्मल जलकी नरद जगतको, सपनी केवलमानीस जाननवाले हैं और जो अचिननीय प्रमावकै नजाना है नुविधिनाथ भगवान, नुमको बोत्र दें। सत्त्वानां परमानंद-कंदानंदनवांबुदः । स्याहादामृत-निरचंदी, शीतलः पातु वा जिनः ||१२|| [जीवोंक उन्नमसे उन्नम आनंदला अंकुर टनमें जो नबीन मे समान है (अर्थात जैन नवीन मर जलन जमानमें अक्रुर, फटने हैवैसेही जिनकी वाणीत हृदयम
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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