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________________ ...... चौबीस तीर्थंकर-स्तुति. . ३ घुसकिरीट-शाणाग्रो-तेजितांघ्रि-नखापालि। . . भगवान् सुमतिस्वामी, तनोत्वमिमतानि वः ॥७॥ [देवताओंके मुकुट (ताज) रूपी शाण (सान) के अगले • भागके कोनोंसे जिनकी नखपंक्तिः चमकदार बनी है (यानी -देवताओंके,आगे आकर,चरणों में मुकुट सहित मस्तक झुकानेसे, नाखून चमक रहे हैं) वे भगवान् सुमतिस्वामी तुम्हारी इच्छाएँ .. पूरी करें। - पद्मप्रभ-प्रभोर्देह-भासः पुष्णंतु वः श्रियम् । . अंतरंगारिमथने, कोपाटोपादिवारुणाः ।।८।। [अंतरंग वैरियों (काम, क्रोधादि) का मंथन (नाश) करनेके लिए कोपकी प्रबलतासे मानों लाल हो गई है ऐसी, 'पद्मप्रभ प्रभुके शरीरकी अरुण (लाल), कांति तुम्हारे कल्याणका (मोक्ष रूपी लक्ष्मीका) पोषण करे।] श्रीसुपार्श्व-जिनेंद्राय, महेंद्र-महितांघ्रये ।। नमश्चतुर्वर्णसंघ-गगनाभोगभास्वते ॥९॥ [चतुर्विध संघ (साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका) रूपी आकाशके विस्तारमें सूर्य के समान चमकनेवाले, और इन्द्रोंके द्वारा पूजित चरणवाले श्रीसुपार्श्वनाथ जिनेंद्रको नमस्कार हो।] चंद्रप्रभ-प्रभोश्चंद्र-मरीचि-निचयोज्ज्वला । मूर्तिमूर्त-सितध्यान-निर्मितेव श्रियेऽस्तु वः ॥१०॥ - चंद्रप्रभ प्रभुकी जो मूर्ति मूर्तिमंत शुक्ल ध्यानसे वनी... 'हुईसी मालूम होती है, वह तुम्हारे लिए शानलक्ष्मी प्रामिका
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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