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________________ भऋपभनाथका वृत्तांत [२३३ - जाती है। और जो विद्याधर किन्हीं पतिपत्नीको मार डालेगा या किसी स्त्रीके साथ उसकी इच्छा न होनेपर भी संभोग करेगा उसकी विद्या भी उसको तत्काल ही छोड़ जाएगी ।" नागपतिने यह आज्ञा ऊँची आवाजमें कह सुनाई और सदा कायम रखने के लिए रत्नोंकी दीवार में प्रशस्तिकी तरह खुदवा दी। फिर नमिविनमि दोनोंको विधिसहित विद्याधरोंका राजा बना, दूसरी कुछ जरूरी व्यवस्था कर, नागपति अंतर्धान होगया। (२०६-२१८) अपनी अपनी विद्याओंके नामसे विद्याधरोंकी सोलह जातियों हुईं। जैसे- गौरी विद्यासे गौरेय, मनु विद्यासे मनु पर्वक, गंधारी विद्यासे गांधार, मानवी विद्यासे मानव, कौशिकी पूर्व विद्यासे कौशिकी पूर्वक, भूमितुंड विद्यासे भूमितुंडक, मूलवीर्य विद्यासे मूलवीर्यक, शंकुका विद्यासे शंकुक, पांडुकी विद्यासे पांडुक, काली विद्यासे कालिकेय, श्वपाकी विद्यासे श्वपाकक, मातंगी विद्यासे मातंग, पार्वती विद्यासे पार्वत, वंशालया विद्यासे वंशालय, पांसुमूला विद्यासे पांसुमूलक, और वृक्षमूला विमासे पृतमूलक । (२१६-२२४) . इनके दो भाग किए गए; आठ जातियों के विद्याधर नमिके राज्यमें और आठके विद्याधर विनमिक राज्यमें हुए । अपनी अपनी जातिमें अपने शरीरकी तरह उन्होंने हरेक विद्यापति देवताकी स्थापना की। सदा वृपभस्वामीकी मूर्तिकी पूजा करनेवाले वे धर्मको वाधा न पहुँचे इस तरह, देवताओं के समान मोग भोगते हुग समय बिताने लगे। मानों दुसरे शन और शानेंद्र हो इसतरह ये दोनों(नमि-विनमि)फिसीसमग द्वीपांनकी जगली.
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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