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________________ २३२] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्र: पर्व १. सर्ग ३: - - अंशोक, वीनशोक, विशोकक, मुखालोक, अलक तिलक, नमस्तिलक, मंदिर, कुमुदकुद,गमनवल्लम, युवतीतिलक, अवनि. तिलक, सगंधर्व, मुक्तहार, अनिमिप विष्टप, अग्निचाला, गुरुज्वान्ता, श्री नितनपुर, जयश्री निवास, रत्नकुलिश, वसिष्टाश्रम, द्रविजय, समद्रक, भद्राशयपुर, फनशिखर, गोनीरवर शिखर, वैयनोम शिवर, गिरिशिखर, घरणी, वारशी, मुदर्शनपुर, दुर्ग, दुर्द्धर, माहंद्र, विजय, मुर्गधिन मुरत, नागरपुर, श्रोर रत्नपुर. घरगोंद्रकी याज्ञासे विनमिने गगनबल्लम नामके नगर में निवास किया। यह नगर सभी नगर-नगरियोंके मध्यभागमें था। (१६६-२०८) विद्याधरॉकी महान ऋद्विवाजी दोनों तरफके नगरोंकी हारमालाएँ उनके ऊपर रही हुई व्यंतर अंगीके प्रतिबिंबसी लान पड़ती थीं। उन्होंने दूसरे अनेक गाँव, कसबे और उपनगर. मी असाए। और स्थान व योग्यता अनुसार कई जनपद (देश) मी बसाए। जिन जिन जनपदोंसे लाकर वहाँ लोगोंको बसाया था उन्हींक नामोंके अनुसार उन देशांक नाम रखे गए। ममी नगरोंमें नमि विनमिने, हृदयकी तरह. समायों अंदर भगवान श्री नाभिनंदनको स्थापित किया। • विद्याधर, विद्याांसे उन्मत्त होकर अविनयी न बन जाए इसलिए घरगाउन उनके लिए नियम बनाया कि जो विद्याधर अपनी विद्याके धर्महमें, जिनेवर, जिनमंदिर, चरमशारीरी (उसी तन्ममें मोन सानवाले ) और कायोत्सर्ग ध्यान रहे हुए मुनिका अपमान करेगा उसकी विद्या इसी तरह चली जाएगी जिस तरह पालमी श्रादमीको छोड़कर, लक्ष्मी चली
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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