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________________ ... भ० ऋषभनाथका वृत्तांत . [२२१ नमस्कार करते हैं । अदत्तादानका (बगैर दिए किसीकी चीज लेनेका ) त्यागरूपी मार्ग बंद हो गया था, उसपर सबसे पहले, चलकर उसे पुनः प्रारंभ करनेवाले, हे भगवान! हम आपको नमस्कार करते हैं। कामदेवरूपी अंधकारका नाश करनेवाले, अखंडित ब्रह्मचर्यरूपी महान तेजवाले सूर्यके समान हे प्रभो! हम आपको नमस्कार करते हैं। तिनकेके समान जमीन-जायदाद वगैरा सब तरहके परिग्रहोंको एक साथ छोड़ देनेवाले, हे निर्लोभ आत्मावाले प्रभो! हम आपको नमस्कार करते हैं। पाँच महाव्रतोंका भार उठानेमें वृपभ (बैल) के समान और संसाररूपी समुद्रको तैरने में कछुएके समान आप महात्माको हम नमस्कार करते हैं। पाँच महानतोकी सगी बहनोंके समान पाँच समितियोंको धारण करनेवाले, हे प्रभो! हम आपको नमस्कार करते हैं। आत्मभावोंमेंही लगे हुए मनवाले, वचनकी प्रवृत्तिको रोकनेवाले और सभी प्रवृत्तियोंसे अलग शरीरवालेऐसे तीन गुप्तियोंको धारण करनेवाले हे प्रभो! हम आपको नमस्कार करते है।" (८१-६०) इस तरह स्तुति कर देवता जन्माभिपेकके समय जैसे नंदीश्वर द्वीप गए थे, वैसेही नंदीश्वरद्वीप जा, (वहाँ अहाई महोत्सव कर) अपने अपने स्थानोंको गए । देवताओंकी तरहही भरत और बाहुवली वगैरा भी प्रभुको नमम्कार कर, दुखी मनके साथ अपने अपने स्थानोंको गए। विहार अपने साथ दीक्षा लेनेवाले कन्छ-महाकाहादि गुनियों
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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