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________________ २१४ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व १. सर्ग ३. पालन करो। तुम हमारी आज्ञा पालनेवाले हो; और हमारी यही पाना है।" प्रभुकी आज्ञाको उल्लंघन करनेमें असमर्थ भरतने राज्य अंगीकार किया । कहा है ..."गुरुग्वेषैव विनयस्थितिः। . - [गुरुजनों के लिए इसी तरहकी विनयस्थिति है यानी बड़ोंकी यात्रा पालनाही छोटोका कर्तव्य है।]:(८-१०): ::: तव नम्र भरतने, सर झुकाकर उन्नतवंशकी तरह पिताके सिंहासनको अलंकृत किया। (भरत सिंहासनपर बैठा 1) प्रभुके आदेशसे अमात्यों (बजीरों ), सामंतों और सेनापति वगैरहने भरतका उसी तरहका राज्यारोहण (गद्दीनशीनी) उत्सव किया जिस तरहका उत्सव ऋषभदेव भगवानके राज्यारोहण के समय इंद्रादि देवोंने किया था। उस समय प्रमुके शासनकी तरह भरतके मस्तकपर पूर्णिमाके चाँदसा अखंड छत्र सुशोभित होने लगा। उनके दोनों तरफ ढलते हए चमर चमकने लगे, वे भरतक्षेत्रके अर्द्धद्वयसे आनेवाली लक्ष्मीके दो दूतोंसे मालूम होते थे। भरत बम्रों और मोतियोंके आभूपोंसे ऐसे सुशोभित होने लगे, मानों वे उनके अति उज्ज्वल गुण हो । महामहिमाके योग्य उन नवीन राजाको, नवीन चंद्रमाकी तरह राजमंडलने अपने कल्याणकी इच्छासे, प्रणाम किया। (११-१६). ..... . प्रभुने बाहुबली वगैरा पुत्रोंको भी उनकी योग्यताके अनुसार देश वाँट दिए। उसके बाद प्रमुने कल्पवृक्षकी तरह, लोगों १- भरतक्षेत्रके उत्तराई और दक्षिणाई, ऐसे दो भाग । .
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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