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________________ सह तीसरा दीक्षा अब प्रभुने, तत्कालही सामंत आदि सरदारोंको और भरत, बाहुबली वगैरा पुत्रोंको बुलाया व भरतसे कहा, "हे पुत्र! यह राज्य तुम सँभालो; हम अव संयमरूपी साम्राज्य ग्रहण करेंगे।" .. स्वामीके वचन सुनकर भरत थोड़ी देर सर झुकाए चुपचाप खड़ा रहा,फिर हाथ जोड़ गद्गद स्वरमें बोला,"हे स्वामी! आपके चरण-कमलोंमें लोटनेसे जैसा सुख मिलता है वैसा सुख सिंहासन पर बैठनेसे नहीं मिलेगा। आपके चरण-कमलोंकी छायामें मुझे जिस आनंदका अनुभव होता है, उस आनंदका अनुभव मुझे छत्रकी छायामें नहीं होगा। यदि मुझे आपका वियोग सहना पड़े तो साम्राज्यलक्ष्मीसे क्या लाभ ? आपकी सेवाके सुखरूपी क्षीरसागरमें राज्यका सुख एक बूंदके समान है।" (१-७) स्वामीने कहा, "हमने राज्य छोड़ दिया है। अगर पृथ्वी. पर राजा न होगा तो 'मत्स्यगलागलन्याय' की सब जगह प्रवृत्ति होगी। इसलिए हे पुत्र ! तुम अच्छी तरह इस पृथ्वीका - . .१-पानी में बड़ी मछलियों छोटी मछलियोको खा जाती है। इसी ..तर यदि गजानही होता है तो जोरावर गरीबोंफो चूसते और सताते हैं। इसी प्रतिको मत्स्यगलागल' कहते हैं ।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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