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________________ १६६ ) त्रिषष्टिं शन्ताका पुरुष-चरित्रः पर्ब १. सर्ग २. नया महापीट के जीव भी उसी सर्वार्थसिद्धि विमानसे च्यवकर सुनंदा; गर्म शुगलिया रूपमें उत्पन्न हुए । मन्देवीकी तरह गर्भ महात्म्यको सूचित करनवाने चौदह स्वम नंगलादेवीन मी दन्न । वान इन नोंकी बात प्रमुख कही । प्रभुने कहा,"तुम्हारे चक्रवर्ती पुत्र पैदा होगा। (८५/ नमय यानपर. जैन व दिशा मुत्र और.संध्याची जन्न देनी है नही नुमंगतान अपनी क्रांनिस दिशाको प्रकाशित करनवान दा बालकको जन्म दिया। उन नाम 'भरत' और. 'ब्राझी र गम । (पन) ___ वर्षाचनु अब मंत्र और विजनीको जन्म देती है बैंसही सुनंदानं झुंदर प्राकृतिबाळ बाहुबन्ति' और 'मुंदरी' को जन्म दिया।4) किर नुमंगलाने, विदूर्वतकी भूमि जैसे रनोंको उत्पन्न करना है बैंस उनचान युग्मपुत्रांको (लड़कोको ) जन्म दिया । महापराक्रमी और उत्साही बं बालक इस तरह खेलतेऋदन बढ़ने और पुष्ट होने लग जैस वियपर्वतमें हाथियों बच्चे होते हैं। जैसे बहुतसी शाबाओंसे बड़ा वृद्ध शोमना है. बैंस अपने बालकोम विर हा अपमन्वामी मुशोभित होने लग 1 (20-८६) उस समय कानदीप फायनांचा प्रभाव इसी तरह मन होने लगा जैग मर दीपांका प्रकाश कम होता है। अन्य (पापक) के पंडमें मनाना (लाब) के कगा उन्यन होम है, देलई युगन्तियों में धीरे धीरे क्रांघादि ऋया उत्पन्न होने लगा ।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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