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________________ १.] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्र: पत्र १. सन २. शोमने लगी और उनके चरणों में रत्नमय झाँझर पहनाए, उनकी माणकार दोनोंके गुणगानसी मालूम होने लगी। देवियोंने इस तरह दोनों वालाओंको लेजाकर मातृभुवनमें स्वर्ण के श्रासनपर बिठाया। (७६६-२३) उसी समय इंद्रने आकर वृषभलांछनवाले प्रमुसे विवाह लिए तैयार होनेकी विनती की। प्रभुने यह सोचकर इंद्रकी विनती मानली कि मुझे लोगोंको व्यवहारमार्ग बताना चाहिए और सायही मुझे जिन क्रमांको अवश्य भोगना पड़ेगा उनको भी भोग लेना चाहिए। विधिक जानकार इंद्रने प्रभुको स्नान कराया, अंगराग लगाया और यथाविधि सिंगा। फिर प्रभु दिव्य वाहन में बैठकर विवाहमंडपकी तरफ चले । इंद्र छड़ीदारकी तरह उनके आगे आगे चला, अप्सराएँ दोनों तरफ नमक उतारने लगी, इंद्राणियाँ श्रेय करनेवाजे धवल मंगलगीत गाने लगी, सामानिक देवियाँ बलाएँ लेन ( किसीका रोग दुःख अपने पर लेना लगीं और गंधर्व तुरतही जन्म हुए हर्षसे बाजे बजाने लगे। इस तरह प्रमु दिव्यवाहन में मंडपके द्वारके पास श्राप; फिर विधिको जाननेवाले प्रमु, नैंस समुद्र अपनी मर्यादा-भूमिपर आकर सकता है बैंसेट्टी, वाहनसे उतरकर, विवाहमंडपके दरवाजेपर खड़े हुए । प्रभु इंद्रके हाथका सहारा लेकर खड़े हुए ऐसे मालूम होते थे मानों हाथी वृक्षका सहारा लेकर खड़ा है। (२४-८३१) तत्कालही मंडपकी त्रियांमसे किसीने एक सरावसंपुट १-दो कारोंको मिलाकर बनाया हया पात्रा
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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