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________________ .. सागरचंद्रका वृत्तांत समान मालूम होती थीं। कामदेवके ठहरनेके नवीन मंडल प्रदेश) के समान उनके ललाटोपर चंदनका सुन्दर तिलक किया। उनकी आँखोंको नीलकमलके वनोंमें आनेवाले भौंसेंके समान काजलसे सँबारा; उनके अंवोड़े (पीछे गोलाकारमें बंधी हुई केस-वेणियों) खिले हुए पुष्पोंकी.मालाओंसे गूंथकर वाँधे, वे ऐसे मालूम होते थे मानों कामदेवने अपने हथियार रखनेके लिए शस्त्रागार बनाए हैं। चंद्रमांकी किरणोंका तिस्कार करनेवाले और लंबे पल्लावाले जरीसे भरे विवाहके वस्त्र उन्हें पहनाए पूर्व और पश्चिम दिशा ओंके मस्तकोंपर जैसे सूर्य और चंद्रमा रहते हैं वैसेही उनके 'मस्तकोंपर विचित्र मणियोंसे दैदीप्यमान मुकुट रखेउनके कानों में मणिमय अवतंस (करनफूल ) पहिनाए वे अपनी शोभासे रत्नोंसे अंकुरित-शोभित मेरुपर्वतकी पृथ्वीके सव अभिमानको हरते थे। कर्णलताओंमें नवीन फूलोंके गुच्छोंकी शोभाकी विडंबना (दिल्लगी) करनेवाले मोतियोंके सुन्दर कुंडल पहनाए, कंठोंमें विचित्र माणिकोंकी कांतिसे आकाशको प्रकाशित करनेवाले, और संक्षेप (छोटा) किए हुए इंद्रधनुपकी लक्ष्मीको (शोभाको) हरनेवाले पदक (गलेके आभूपण-विशेष) पहनाए; भुजाओंपर कामदेवके धनुपमें बाँधे हुए वीरपटसे सुशोभित रत्नमंडित वाजूवंद बाँधे; उनके स्तन-तटोपर, चढ़ती उतरती नदीका भ्रम करानेवाले हार पहनाए; उनके हाथोंमें मोतीके कंकण पहनाए; वे जललताओंके नीचे सुशोभित जलके आल. वालसे (थालेसे) जान पड़ते थे, जिनमें घुघरियोंकी कतारें घमकार कर रही है, ऐसी मणियोंकी कटिमेखलाएँ (कंदोरे) उनकी कमरों में बाँधे, इनसे वे रसिदेवीकी मंगल-पाठिकाभोंसी
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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